...

10 views

यूँ_ही

कभी - कभी हालत यूँ भी बन जाते हैं ...कितने अल्फाज़ दिमाग में खलबली मचाए रहते हैं.... एक साथ कई तरह के अहसास दिलो - दिमाग से गुज़र रहे होते हैं... मन चाहता है लिख दें हर एक लफ्ज़ को.... हर एक अहसास को काग़ज़ पर उकेर दें...सब हालात को शब्द बनाकर कागज़ पर बहा दें... और फिर फुर्सत में बात - बेबात उन्हीं शब्दों की लहरों में ख़ुद को डुबोते रहें...
लेकिन; ये क्या ?? कोई लफ्ज़ ,कोई लहज़ा सही नहीं लग रहा जो हालात को बयां कर पाए ,ठीक उसी तरह से जिस तरह से वो असलियत में हैं... हम इंतज़ार करते रहते हैं सही समय का , जब शब्द कलम का साथ दे पाएं .... जब लिखे गए शब्द हमारे हालात को सही सही बयान कर पाए...और हम हर दिन उस समय का इंतज़ार करते रहते हैं .... और अंत में हर दिन की तरह उठी हुई कलम बिना कुछ लिखे ही ख़ामोश हो जाती है... और कोरा कागज़ इंतज़ार करता रहता है....शब्द और समय के समरूप होने का....

#यूँ_ही
#कलम_की_ज़बान
© संवेदना