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सलोनी ( एक होनहार लङकी )
जिन्दगी आपसे क्या क्या नहीं करा सकती, इस बात का अन्देशा लगाना भी व्यर्थ है आज बराक ओबामा, अमेरिका के राष्ट्रपति रह चुके हैं लेकिन उनकी लङकी एक छोटे से cafe पर जीवन यापन के लिए संघर्ष कर रही है वहीं दूसरी ओर अगर बात की जाए तो भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री मा. नरेन्द्र मोदी जी के भाईसाहब भी अपना जीवन यापन मूलभूत कार्य सम्पादित करते हुए कर रहे हैं, ऐसे ही उदाहरण तमाम देशों के नाना प्रकार के लोंगो के देखने को मिलते हैं...

ये कोई कहानी नहीं सत्यता है, उस लङकी की जो आज अपना सारा काम स्वयं करती है मनचलों को ठिकाना लगाना जानती है अपनी मस्ती में रहती है पर कभी कभी उसे कुछ बाहरी तत्व मायूस होने को मजबूर कर देते हैं वो किसी भी परिस्थिति में नहीं रोती, लेकिन उनके साथ घटी उन घटनाओं को याद कर उनके आँसू आ जाते हैं वैसे उनका इतिवृत अगर कोई सुन ले तो पैरों तले जमीन खिसक जाऐगी, लेकिन वो एक होनहार, निडर और साहसी लङकी है जो कभी किसी से नहीं ङरती और इतनी अतरंगी भी है कि रातों मे चलते फिरते लोंगो को परेशान कर देती है पर केवल उन्हीं को जो उसकी जान के पीछे पङे हुए हैं, नहीं उसका हृदयतल तो इतना कोमल है कि वो एक वृद्धाश्रम, बाल्याश्रम स्वयं चलाती है वो भी महज 21 वर्ष की उम्र में, बच्चों का सारा खर्च उन्हें किसी भी प्रकार की कोई कमी महसूस कराए बिना स्वयं वहन करती हैं आऐ दिन उनका जन्मदिन मनाती रहती हैं पर अपना जन्मोत्सव कभी नहीं मनातीं , इसके पीछे भी एक बहुत बङा राज है.....


शायद उन्हें यह पढकर दुख हो लेकिन इसे पूरा कर लोंगो के बीच रखना भी मैं कर्तव्य समझता हूँ , बात है लगभग 20 वीं सदी के अन्तिम दशक के नौवें वर्ष की जब उनका जन्म हुआ था, वो दिन वह अपनी जिन्दगी का सबसे बुरा दिन मानती हैं अब जो जिस दिन पैदा हुआ उसी दिन के आने की चेष्टा नहीं रखता तो उसके पीछे कोई बहुत बङी बजह ही होगी, जी हाँ! पुरूष समाज को कलंकित कर जर्जर कर देने वाली घटना का उदय उनके आँगन में हुआ यह वही दिन था जब उनकी माँ ने असह्यय दर्द से कराहते हुए एक प्यारी सी बच्ची को घर के आंगन में किलकारी गूंजने के लिए उतारा था, लेकिन उसी दिन की संध्या को कुछ ऐसा हुआ जो सलोनी के जीवन में उसके नाम के विपरीत सुन्दरता का अस्त पलभर में कर गया, अभी सलोनी को इस धरा पर कुछ ही समय हुआ था कि उसके पिता ने अपनी रखैल के लिए सलोनी के जन्मदिन पर बन्दूक की एक गोली उसकी माँ के शरीर में उतार दी....

जिसने सलोनी को इस धरा पर अस्तित्व दिया उस माँ के प्यार से वंचित सलोनी ने जब होश सम्भाला तो उसने अपने भाई से माँ पापा का जिक्र किया, जान से ज्यादा चाहने वाले भाई सलोनी को बच्ची कह कर पुकारते हैं न चाहते हुए भाई ने जब यह बात सलोनी को बताई तो सलोनी के हृदय में एक तीव्र ज्वाला का विस्फोट हुआ मानो कोई परमाणु बंम फटा हो और उसके रेडियस में आने वाले तमाम अंगों की विचारधारा उससे प्रभावित हो गई हो, सलोनी को अब स्वयं से घृणा हो गई, अपने जन्मदिवस से घृणा हो गई, उसे पिता शब्द से सख्त नफरत हो गई, मेरा ऐसा कैसा जन्म जो मैंने अपनी माँ को खो दिया, इस विचारधारा ने सलोनी की सुन्दरता को तो बरकरार रखा लेकिन उसके जहन की ज्वाला और विस्फोट से प्रभावित सलोनी आज अपने पिता की जान के पीछे पङी है उसके अन्दर उदारता कूट कूट कर भरी है वह अपने पिता की शक्ल भी देखना नहीं चाहती पर उसका पिता आज भी सलोनी को अकेला पाकर उसे मारने की कोशिश करता है कभी कभी तो अकेले में बन्दूक की गोलियों का ऐसा सीन होता है मानो दो देशों के मध्य भीषण युद्ध चल रहा हो,उन्होंने मुझे बताया कि दो तीन बार उसके हाथ पर गोली भी लग चुकी है, भाई ने बचपन से ही सलोनी को इस माहौल से दूर रखना चाहा और उनकी शिक्षा के लिए उसे बहुत दूर कनाडा भेज दिया लेकिन सलोनी जब भी भारत ( चंडीगढ ) आती तो उसे वही बात जहन तक चोट पहुँचाती और उसका पिता उस निहत्थी लङकी पर असमय प्रहार करने को तत्पर रहता लेकिन वो एक साहसी लङकी है गन लेकर चलती है लेकिन अपने पिता के अलावा अपने किसी भी दुश्मन पर उसने कभी गोली नहीं चलाई उन सब से वो हाथ पैरों से निपट लेती है और इस बात से बहुत ङरती है कि बस कोई भी बात भाई तक न पहुँचे क्यूकि भाई ऐसा हाल करेंगें कि उन्हें खुद को पहचान पाना मुश्किल हो जायेगा , ऐसी परिस्थिति में भी सलोनी हमेशा खुश रहने की कोशिश करती है पर कभी दिखावा नहीं करती, परेशान होने पर वह नए नए आडम्बर रचती है अपने कमरे से नीचे किसी पर गर्म पानी ङाल देती है, रात में कॉलोनी वालों के गेट पर मार्कर से चित्रकारी कर आती है, रस्ते में परेशान करने वालों को ङंङों से कूट देती है और तमाम नाना प्रकार के ऐसे कृत्य जो सुनने में एक कहानी लगते हों, सब परेशान होने पर करती है...

यही सब नहीं उसके पिता की वजह से उसके दुश्मन या फिर कहें उसके पिता के गुप्तचर भी बहुत हैं जो उसे परेशान करते है बहुत लोंगो को उसके भाई ने जेल में बंद भी कराया है इन सभी छोटी छोटी समस्याओं के अतिरिक्त सलोनी एक ऐसी घातक बीमारी से लङ रही है जो उसे शायद कभी कभी अपने जीवन को लेकर चिंतित कर देती है वैसे तो सलोनी चिन्ता को भी चकमा दे देती है पर जब कोई उसे अनाथ बोलता है तब ऐसी बात से वो बहुत परेशान हो जाती है उसने बताया था कि मैं आज तक कभी नहीं रोई पर अनु आज मैं बहुत रो रही हूँ, मैंने उन्हें सान्त्वना दी और शान्त कराया पर उनके जहन की ज्वाला को शान्त कराना तो मुमकिन नहीं है, इन बातों से परेशान सलोनी आज अपने कमरे में बंद है और इसका प्रभाव मानसिक स्तर पर इतना बढ जाता है कि वो और अधिक बीमार हो जाती है, वो अपने आश्रम के बच्चों के जन्मदिन पर नाना प्रकार के मिष्ठान तथा अन्य साम्रगी आऐ दिन बनाती है पर अपनी घातक बीमारी की वजह से उन्हें खा नहीं पाती जिस वजह वो कभी चिङचिङी सी हो जाती है , उसने मुझे बताया कि मुझे blood cancer हैं मुझे विश्वास नहीं हुआ तब मैंने उनके भाई से जब उसका इतिवृत जाना मैं भी कुछ पल के लिए सहम गया, आऐ दिन उसको ICU में जाना पङता है लेकिन वो बहुत जल्द ठीक होकर आती है और मैं जब ङाँटता हूँ कि ख्याल नहीं रखा जाता क्यूँ गईं थीं वहाँ तो मजे में मुझे बोलती हैं कि अनु यहाँ मन नहीं लग रहा था तो वहाँ घूमने गई थी......

....next part two....


© अनुराग तिवारी