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आत्महत्या
सालुंखे आज कुछ उदास था। बेचैन होकर वह घरसे निकल पड़ा,और रास्ते से गुज़र ते वक़्त एक आदमी टकराकर आगे बढ़ा उस वक्त सालुंखे का ध्यान कहीं ओर था। वह आदमी पीछे मुड़ कर देख रहा था। सालुंखे को वह पहचान गया ,और वह मुड़कर सालुंखे के पास आया और सालुंखे को नमस्कार करके,बोल रहा था।
की "क्या सालुंखे साहब मुझे तड़ीपार करने के वक़्त आप मानने को तैयार नहीं थे, और आज क्या सुन रहा हूं,क्या साहब ऐसी चमड़ी मैटर में आप ,इस तरह मुझे विश्वास नहीं हो रहा है। ऐसा कहकर वह आगे बढ़ चला , सालुंखे कुछ देर सोच में पड़ गये। और फिर से चलते रहे हैं,और आगे बढ़ कर एक महिला उनकी और आके गुस्से से देखती गई,वह सालुंखे जी को पता था वह महिला कोन हैं। फिर वह दिन याद आया,की
उस दिन एक आदमी एक बैग लेकर उनके दफ्तर में आया था। और उस वक़्त उस क्षेत्र का विधायक का कॉल आया और उनको वह कहता था।की यह बैग लेकर मामला निपटा दो और वह केस दर्ज ही ना होने दो ऐसा कहते ही, विधायक का गुस्सा सालुंखे को...