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सच्चा प्यार !!
कहां कोई दिन अलग सा होता है
जिंदगी जब छोटी छोटी खुशियों की भी मोहताज होती है....जिंदगी ऊषा की गुजर रही थी या ऊषा ही जिंदगी को गुजार रही थी...ये बस उसका दिल ही जानता था....
जिसके लिए वो समर्पित थी उसे उसकी कोई परवाह नहीं थी....दिन भर तो घर के कामों में गुजर जाता था....हर शाम उसका अकेलापन उसे बेचैन करता था....इन्ही उलझनों में ऊषा को घर के सामने वाले पार्क में जाना और वहां अकेले बैठ कर वक्त गुजारना अच्छा लगता था....

उस पार्क मे अक्सर ही एक मेज पर वो बैठती थी उसे पता भी नहीं था कोई हर रोज ऊषा को और उसकी उदासियों को नोटिस करता था....

हर रोज उस पार्क में जब ऊषा आती वो ठीक ऊषा के पीछे बहुत दूर से बैठा उसे देखता रहता था.....कुछ वक्त गुजरा तो रजनीश ने सोचा अब तो वो अपने दिल का हाल ऊषा से बता के रहेगा.... पार्क की जिस मेज पर ऊषा बैठती थी आज उसी मेज पर एक छोटी सी नोट के साथ रजनीश ने अपने दिल का हाल गुलाब के साथ रख दिया था....ऊषा जब गुलाब के फूल को देखती हैं वो समझ नही पाती क्या है....तभी उसमे लिखे नोट पर उसकी नजर जाती है जिसमे लिखा था "आपके चेहरे पर मुस्कुराहट अच्छी लगेगी"....ऊषा कुछ समझ नहीं पाती और लेकिन उस गुलाब को भी वही छोड़ नही पाती...ऐसा हर रोज ही होने लगा....कोई हर रोज ही एक गुलाब के साथ एक सुंदर सी नोट उसके पास छोड़े जा रहा था.... एक रोज रजनीश ने मन बनाया आज वो खुद जा कर उन फूलो को ऊषा के लिए लेकर जायेगा.... रजनीश की धड़कने तेज थी .....वो जैसे ही फूलो को लेकर ऊषा के करीब पहुंचता है...ऊषा मुस्कुराकर उसकी ओर देखती है....लेकिन रजनीश पर जैसे सैकड़ों घड़े पानी किसी ने डाल दिया हो.... उसने ऊषा को पीछे से देखा था आज उसने पहली बार उसे करीब से देखा था.... उसके गले का मंगल सूत्र और उसके माथे के सिंदूर पर जैसे ही रजनीश की नजरे जाती हैं....वो सहम सा जाता है....उसकी आंखों के सामने जैसे अंधेरा छा जाता है....ऊषा से वो कहता है, मुझे शायद कोई गलतफहमी हुई थी"...ऊषा टकटकी लगाए उन फूलो को देख रही थी....ऊषा चाहती थी कि रजनीश हमेशा की तरह उन फूलो को उसे दे दे.... लेकिन रजनीश ऐसा नहीं कर पाता.... ऊषा की आंखे लगातार छलकने लगती है.....और रजनीश वहां से चला जाता है.... ऊषा दूसरे दिन भी पार्क में जाती है लेकिन आज उसकी मेज पर कोई फूल नहीं थे.... ऊषा हर रोज उसी मेज पर बैठती है उसी गुलाब के इंतजार में......

दूसरी तरफ रजनीश का भी यही हाल था....उसे ऊषा की छलछलाती आंखे बार बार अपनी ओर खींच रही थीं....वो आज ऊषा के पास जा कर बात करने का निश्चय करता है...
ऊषा जिस मेज पर बैठती थी आज उसी मेज पर रजनीश आकर बैठता है....लेकिन बात कहां से शुरू करे दोनो समझ नहीं पा रहे थे....पार्क में छोटे बच्चों को खेलते देख कर दोनो मुस्कुरा रहे थे.... फिर रजनीश ने ऊषा से पूछा,"आप क्या सोचती हैं मेरे लिए".... ऊषा की आंखे एक बार फिर नम हो गई थी.... वो कह रही थी...."मैं मेरी मर्यादा की पतली सी लकीर भी पार नहीं कर सकती लेकिन मुझे तुम्हारा प्यार चहिए".... ऐसे ही जैसे तुम दे रहे थे मुझे....
मुझे तुम्हारा प्यार चहिए.....और तुम्हारे प्यार के बदले में तुम्हे कुछ नही दे पाऊंगी.....मुझे तुम्हारे गुलाब तो चाहिए मगर इस जन्म में मैं मर्यादा की सीमा नहीं लांघ पाऊंगी....रजनीश स्तब्ध सुन रहा था उसे.... सुन रहा था उसकी ईमानदार सी खुदगर्जी को....और ऊषा के हाथों में अपना हाथ लेकर उसने कहा," आप जैसा चाहेंगी वैसा ही होगा"....आपको मैं प्यार तो दूंगा बदले में मैं आपसे कुछ नही चाहता और हम इस रिश्ते को ऐसे ही तमाम जिंदगी बिना बदनाम किए निभायेंगे......

© अपेक्षा