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बंजारन की डायरी


कई बार ऐसा होता है ना की बहुत से लोग जीवन में मिलते हैं और ऐसे मिलते हैं की जैसे किसी जन्म के बिछड़े सच्चे दोस्त या सगे हों।

और फिर अचानक से गायब ऐसे होते हैं की उनके होने तक को नकार जाता है आपका जीवन।

पिछले कुछ महीनों से ऐसे बहुत से लोग जुड़े हैं, और और वो अपना कहलाने को इतना तत्पर होते हैं जैसे की बहुत सदी के इंतजार के बाद किसी जमी पर बूंदों के छीटें पड़ीं हो।

पर बीते साल ने बहुत कुछ सिखाया है और उस सीखने में इतना समझ आया है जो जितनी जल्दी जुड़ना चाहते हैं वो उतनी ही जल्दी बिछड़ते हैं और बिछड़ने को इतनी सरलता से अपनाना सीखा है की मुझे अब तनिक भी दुख नहीं होता।

एक अजीब सी चीज महसूस किया है की यहां हर इंसान तलाश में हैं, सबको किसी और से कुछ चाहिए , किसी को अपने जीवन के सूनेपन को भरने के लिए आपसे कुछ रंग उधार चाहिए किसी को खुद आप चाहिए।
जबकि कोई देना नही चाहता कुछ भी।

लोगों के बदलते रवैए का अनुमान पहले से होता है मुझे।
इसी लिए बुरा तो बिलकुल नहीं लगता।
अपितु हसी आती है अब, जब कोई कहता है एक दो दिन की बात में की आप मेरी बेस्ट फ्रेंड हो 😁

जाने कहां से बटोरते हैं लोग इतनी हिम्मत इतना सफेद झूठ को परोसने के लिए😜

ऐसे बहुत से अनुभव हुए हैं बीते दिनों में और इनसे कुछ न कुछ सीखने को मिला है और उसमे से सबसे ज्यादा जो सीखा है वो है बिना किसी उम्मीद के किसी से बात करना।

कोई अपेक्षा नहीं, कोई तकलीफ नहीं लोग मिलते बिछड़ते रहेंगे और जीवन आगे बढ़ता रहेगा ।

मुझमें एक बंजारन रहती है उसको कोई जुड़ा पसंद ही नहीं आता और किसी को खुद हक देना सीखा नही है इसने।

दोस्त बनिए पर हक मत मांगिए ,रिश्ते सांस लेते हुए अच्छे लगते हैं बहुत ज्यादा बनावटी रिश्ते ज्यादा देर तक नहीं टिकते।


©प्रिया
© life🧬