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दोस्ती (भाग 17)
रविन्द्र - प्रतीक के पिता जी
शीला - प्रतीक की माता जी

शिमला से आए उनको एक हफ्ता हो गया था पर अभी तक प्रतीक ने मालती को अपने मन कि बात नहीं बताई। मालती इशारों में बताती तो वो समझ नहीं पता।एक शाम वो दफ्तर से घर आए तो दोनों के माता पिता आए हुए है।अंदर हसी खुशी का माहौल था सबने साथ में खाना खाया बातें करी और सो गए। अगले दिन इतवार था नाश्ता करके सब हॉल में बैठे हुए थे।

रविन्द्र ( प्रतीक से) : तुम्हे कोई लड़की पसंद है?
प्रतीक डरते हुए : नहीं तो।
रविन्द्र : हमने तुम्हारे लिए एक लड़की पसंद करी है। वो घनश्याम जी के परिवार की है। बहुत समझदार सुंदर और शुशील भी है। हमे तो बहुत पसंद है। हम चाहते है तुम उससे ही शादी करो।
प्रतीक : इतनी भी क्या जल्दी है। अभी तो मेरे पास बहुत समय है आराम से कर लूंगा।
रविन्द्र : तुम्हारे पास है पर हमारे पास नहीं है। और अगर तुम्हे कोई दूसरी लड़की नहीं पसंद तो मै कल ही तुम्हारी सगाई करवा देता हूंँ।
प्रतीक : मेने लड़की को नहीं देखा है, मै उसे नहीं जानता हूंँ। मुझे नहीं करनी इससे शादी।
रविन्द्र : क्यो नही करनी। हमे उसमे कोई कमी नहीं दिखती। कोई और पसंद है तो ऐसा बोला।
प्रतीक : नहीं।
रविन्द्र : बस फिर हमने देखी है और अब कल ही तुम्हारी सगाई है बात ख़त्म।
पिता जी क्रोधित होते हुए बोली।

मालती उसे मना ना करदे इस डर से उसने किसीको ये भी नहीं बोला की वो मालती को पसंद करता है।
अगले दिन 12 बजे सगाई होनी थी, घर में उसके दोस्त भी आए हुए है। मालती अपने परिवार के लोगों के बीच थी, जब प्रतीक से रहा नहीं गया तो उसने मालती को किसी काम के बहाने से अपने कमरे मै बुलाया।

प्रतीक : मुझे ये सगाई नहीं करनी।
मालती : तो अपने पिता की से कहो।
प्रतीक : मै उससे शादी कर था हूंँ तुम्हे कोई फर्क नहीं पड़ता?
मालती: मुझे बहुत काम है, मै जा रही हूंँ। (कहकर मालती जाने लगती है।)
प्रतीक : आई लव यू, मुझे तुम पसंद हो, मुझे तुमसे शादी करनी है।
मालती: तुम्हे मुझसे शादी करनी है तो उससे सगाई क्यो कर रहे हो? कल जब तुम्हारे पिता जी ने पूछा तब क्यो नहीं बोला? इत्ती जल्दी कहने कि क्या जरूरत थी शादी के मंडप में जाकर कहते।"(पलटकर मालती उसकी ओर वापस आती है गुस्से में कहती है कर चली जाती है।)

प्रतीक भी नीचे सबके बीच चला जाता है। पंडित जी आते है और सगाई की रस्में चालू कर देते है। प्रतीक के बगल में एक लड़की अपना चेहरा ढककर खड़ी हो जाती है।
पंडित जी : बेटा अंगूठी पहना दो।
प्रतीक : मुझे ये सगाई नहीं करनी। ( गहरी सांस लेते हुए प्रतीक कहता है।)
सब लोग उसको गुस्से में देखने लगते है।
"पक्का नहीं करनी?" घूंघट में खड़ी लड़की पूछती है।
"हांँ" कहकर प्रतीक वहाँ से जाने लगता है फिर पीछे आता है और उसका घूंघट उठाता है।
© pooja gaur