एक असम्भव प्रेम गाथा अनन्त में है।।239
"इस गाथा में किसी भी पार्थिव का कोई धर्म कर्म सत्व गुण स्वभाव मूल्य समर्पण त्याग बलिदान मूल्य रज गुण स्वभाव नहीं है क्योंकि वह आत्मा जब पार्थिव छोड़ती है तो पार्थिव शून्य हो जाता है और प्रेमब्ध होने से वो
शून्य कहलाकर कर्मपोशित कर्मपोटली स्वागिंनी से मुक्त होकर प्रेम स्मारक हो जाता है।।और सभी त्रृटियो से जैसे धर्म कर्म सत्व गुण रज सवाभाव त्याग बलिदान मूल्य समर्पण से कर्महीन, कर्मपोशित से कर्मपद समाप्त करकर वह वह पार्थिव देह शून्य होकर ही अस्तित्व की खोज व आलेख कर असीमता का सार अस्तित्व बतते वहीं एक असम्भव प्रेम गाथा...
शून्य कहलाकर कर्मपोशित कर्मपोटली स्वागिंनी से मुक्त होकर प्रेम स्मारक हो जाता है।।और सभी त्रृटियो से जैसे धर्म कर्म सत्व गुण रज सवाभाव त्याग बलिदान मूल्य समर्पण से कर्महीन, कर्मपोशित से कर्मपद समाप्त करकर वह वह पार्थिव देह शून्य होकर ही अस्तित्व की खोज व आलेख कर असीमता का सार अस्तित्व बतते वहीं एक असम्भव प्रेम गाथा...