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इश्क इबादत -५
रात भी कभी कभी गुजारे नहीं गुजरती। हृदय पहली बार प्रेम में हो तो रात्रि के पहरों का हिसाब रखना कठिन हो जाता हैं, और भोर के स्वागत की उत्सुकता तो अपने चरम पर होती।एक बेख्याली का आलम हर वक्त आपको घेरे होता है। कुछ यही बेचैनी और यही बेख्याली वैष्णवी को भी हो रही थी। प्रेम में प्रेम हो जाने का अहसास हो जाना आपकी स्थिति को और ज्यादा बत्तर कर देता है। वैष्णवी भी रात भर इसी ऊहापोह में विश्वास की दी हुई चॉकलेट खाती रही और विश्वास के खयालों में गोते लगाती रही। दोनो की मित्रता प्रगाढ़ता की ओर अग्रसर थी। मित्रता कोई आवरण नही है अपितु एक शुद्ध भाव है मगर लोग गाहेबगाहे मित्रता का आवरण प्रेम को छुपाने के लिए ओढ़ ही लेते है। वैष्णवी भी इसी आवरण में प्रेम को छुपाने का प्रयास कर रही थी। तभी वैष्णवी श्रुति और अनुपम को मिलने के लिए विश्वास से मदद मांगी। श्रुति वैष्णवी की दोस्त और अनुपम श्रुति का प्रेम
वैष्णवी - विश्वास सुनो ना
विश्वास - कान खुले है मेरे; बोलो( नोट्स बनाने में बिजी)
वैष्णवी - वो श्रुति है न, तुम तो मिले हो न
विश्वास - हां तो क्या हुआ उसे बोलो
वैष्णवी - एक मदद चाहिए थी,तुम न चाहो तो मत करना लेकिन सुनलो
विश्वास - बोल ना यार क्या है।
वैष्णवी - दिल्ली से अनुपम आया हुआ है श्रुति मिलना चाहती है और उसे मेरी मदद चाहिए ओर मुझे उन्हें मिलने में तुम्हारी (एक सांस में सब कह दिया )
विश्वास वैष्णवी को घूरता है और थोड़ी आनाकानी करने के बाद मान जाता है।
to be continued
© shubhra pandey