सच्ची दोस्ती(पवित्र रिश्ता)
दुनिया में एक ही ऐसा रिश्ता है जो हम खुद चुनते है अपने मर्ज़ी से जिसपर किसी की कोई रोक टोक नहीं होती। वह है दोस्ती का।
मैं बहुत संकोचीत स्वभाव की हूँ, किसी से भी बात करनें से पहले कई बार सोचती हूँ फिर थोड़ा तोल कर मोल कर बोलती हूँ । मैं जादा किसी से बात नहीं करती और यह बात सभी जानतें हैं । स्कुल तक तो मेरा यही स्वभाव रहा।
अब मेरा स्कुल खतम हो चुका है, मैंने काॅलेज में अडमिसन भी ले लिया है। आज मेरा काॅलेज का पहला दिन है, जब मैं कालेज गई, थोड़ा चक्कर लगाने के बाद, मेरी क्लास कौन सी है यह पता चल ही गया मुझे । फिर क्या मैं फौरन ही अपनी क्लास में चली गई । जब मैं पहुँची मैंने देखा वहाँ कोई बेंच खाली नहीं था, मैं क्लास के दरवाजे पर खड़ी हूँ और मैं खाली बेंच की तलाश में इधर-उधर नज़रे घुमा रहीं हूँ ।और सभी स्टूडेंट्स की नज़रें मुझे ही देख रही है।
चार-पाँच मिनट तक ऐसा ही चलता रहा, तभी लड़कीयों की लाइन से तीसरे बेंच पर बैठी एक लड़की मेरे सामने आई और बोली चलो मेरे पास बैठ जाओ तुम । फिर उसने मेरा हाथ पकड़ लिया और अपनें बेंच पर बगल में ही थोड़ी जगह दे दी। मैं चुप चाप बैठ गई फिर मैंने उसे धीमें स्वर में "Thank you so much" ऐसा कहा। उसने जवाब देते हुए कहा कोई ना यारा। फिर उसने मेरा नाम पुछा, मैंने जवाब देते हुए कहा "जी शालिनी नाम है मेरा"। फिर मैंने भी झट से पुछ लिया, तुम्हारा नाम? उसने जवाब दिया "करिश्मा"। उसके बाद सर जी क्लास में आए अपना परिचय दिए, सभी स्टूडेंट्स से उनका परिचय लिए और लेक्चर शुरू हो गया। आज काॅलेज का पहला दिन था इसलिए सिर्फ दो लेक्चर ही हुए ।
अब से रोज मैं करिश्मा के बगल में ही बैठने लगी हूँ,
धीरे-धीरे...
मैं बहुत संकोचीत स्वभाव की हूँ, किसी से भी बात करनें से पहले कई बार सोचती हूँ फिर थोड़ा तोल कर मोल कर बोलती हूँ । मैं जादा किसी से बात नहीं करती और यह बात सभी जानतें हैं । स्कुल तक तो मेरा यही स्वभाव रहा।
अब मेरा स्कुल खतम हो चुका है, मैंने काॅलेज में अडमिसन भी ले लिया है। आज मेरा काॅलेज का पहला दिन है, जब मैं कालेज गई, थोड़ा चक्कर लगाने के बाद, मेरी क्लास कौन सी है यह पता चल ही गया मुझे । फिर क्या मैं फौरन ही अपनी क्लास में चली गई । जब मैं पहुँची मैंने देखा वहाँ कोई बेंच खाली नहीं था, मैं क्लास के दरवाजे पर खड़ी हूँ और मैं खाली बेंच की तलाश में इधर-उधर नज़रे घुमा रहीं हूँ ।और सभी स्टूडेंट्स की नज़रें मुझे ही देख रही है।
चार-पाँच मिनट तक ऐसा ही चलता रहा, तभी लड़कीयों की लाइन से तीसरे बेंच पर बैठी एक लड़की मेरे सामने आई और बोली चलो मेरे पास बैठ जाओ तुम । फिर उसने मेरा हाथ पकड़ लिया और अपनें बेंच पर बगल में ही थोड़ी जगह दे दी। मैं चुप चाप बैठ गई फिर मैंने उसे धीमें स्वर में "Thank you so much" ऐसा कहा। उसने जवाब देते हुए कहा कोई ना यारा। फिर उसने मेरा नाम पुछा, मैंने जवाब देते हुए कहा "जी शालिनी नाम है मेरा"। फिर मैंने भी झट से पुछ लिया, तुम्हारा नाम? उसने जवाब दिया "करिश्मा"। उसके बाद सर जी क्लास में आए अपना परिचय दिए, सभी स्टूडेंट्स से उनका परिचय लिए और लेक्चर शुरू हो गया। आज काॅलेज का पहला दिन था इसलिए सिर्फ दो लेक्चर ही हुए ।
अब से रोज मैं करिश्मा के बगल में ही बैठने लगी हूँ,
धीरे-धीरे...