पुरुषोत्तम का कर्म मार्ग: श्रीकृष्ण और राम की कथा
महाभारत के युद्ध के समय, जब अर्जुन ने अपने सगे-संबंधियों, गुरुओं और मित्रों के सामने खड़े होकर युद्ध करने से मना कर दिया, तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें धर्म, कर्म और जीवन के सिद्धांतों का उपदेश दिया। यह उपदेश भगवद गीता के रूप में प्रसिद्ध हुआ। श्रीकृष्ण का सबसे प्रसिद्ध श्लोक इसी गीता का हिस्सा है:
"कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि।"
इस श्लोक का अर्थ है: "तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, फल की चिंता मत करो। कभी भी कर्म का फल तुम्हारा उद्देश्य न बने और न ही तुम्हारी कर्म न करने में आसक्ति हो।"
इस सिद्धांत के अनुसार, श्रीकृष्ण अर्जुन को यह समझाने की...
"कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि।"
इस श्लोक का अर्थ है: "तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, फल की चिंता मत करो। कभी भी कर्म का फल तुम्हारा उद्देश्य न बने और न ही तुम्हारी कर्म न करने में आसक्ति हो।"
इस सिद्धांत के अनुसार, श्रीकृष्ण अर्जुन को यह समझाने की...