बचपन
जब किसी को प्यार होता है तो उसके शरीर के सारे अंग मानो प्रेम का त्योहार मनाने लगते हैं।
मधुवन नगर में तिवारी कालोनी की शिल्पी को देखकर हर किसी का दिल उसके अंतर्मन की बहार का अंदाजा लगा लेता था। ऐसा हो भी क्यों न पुलिया के रामायणी चाचा से लेकर नवयुग कन्या महाविद्यालय तक हर कोई उसे देखकर ही तो अपना दिन सार्थक करता था। उसकी एक झलक क्या मिल गई दिन भर का कारोबार चल पड़ता था वरना सूरज हो या साँसें जून के महीने में भी सर्द पड़ी रहती थी। सच है कि प्रेम से बढ़कर कोई संजीवनी नहीं। बचपन का यार और पहला प्यार अनमोल होते हैं। शिल्पी की अनामिका में ये दोनों नगीने एक साथ जड़ गए जब करण के साथ उसकी सगाई हो गई। बी.ए. प्रथम वर्ष की इस लड़की की शादी किसी महोत्सव से कम नहीं होगी क्योंकि जिसकी सगाई में बिना बुलाए पाँच हजार से ज्यादा लोग आए हों, तो शादी में तो पूरा शहर भी आ सकता है। सोशल मीडिया कितना सुखद संयोग करा सकता है इसकी मिसाल होगी शिल्पी संग करण की शादी।
आज भी लोगों को याद है करण की कैटवॉक। उसे कोई पसन्द नहीं करता था। गोलू कालोनी का हीरो था, दौड़ हो या गुलेल से कंचे का निशाना उसका कोई जवाब नहीं था। अपने इसी फन से उसने रामायणी चाचा की साइकिल चोरी करते चोर की खोपड़ी खोल दी थी और तो और खेल दिवस पर दौड़ में भी वही बाजी मारता आया है। लेकिन शेर के इलाके में कोई बब्बर शेर भी तो आ सकता है, सो आ गया, सी. ओ. साहब का बेटा करण।
शिल्पी के घर के सामने कालोनी का अखाड़ा था। जहाँ पहलवान तो बैशाखी को भिड़ते लेकिन गोलू किसी न किसी से रोज़ भिड़ता था हीरो जो ठहरा। चौथी कक्षा का विद्यार्थी होकर भी वह आठवीं तक के लड़कों को कुछ नहीं समझता था। ये अलग बात थी कि पढ़ाई में उसका हाथ ज़रा तंग था।...
मधुवन नगर में तिवारी कालोनी की शिल्पी को देखकर हर किसी का दिल उसके अंतर्मन की बहार का अंदाजा लगा लेता था। ऐसा हो भी क्यों न पुलिया के रामायणी चाचा से लेकर नवयुग कन्या महाविद्यालय तक हर कोई उसे देखकर ही तो अपना दिन सार्थक करता था। उसकी एक झलक क्या मिल गई दिन भर का कारोबार चल पड़ता था वरना सूरज हो या साँसें जून के महीने में भी सर्द पड़ी रहती थी। सच है कि प्रेम से बढ़कर कोई संजीवनी नहीं। बचपन का यार और पहला प्यार अनमोल होते हैं। शिल्पी की अनामिका में ये दोनों नगीने एक साथ जड़ गए जब करण के साथ उसकी सगाई हो गई। बी.ए. प्रथम वर्ष की इस लड़की की शादी किसी महोत्सव से कम नहीं होगी क्योंकि जिसकी सगाई में बिना बुलाए पाँच हजार से ज्यादा लोग आए हों, तो शादी में तो पूरा शहर भी आ सकता है। सोशल मीडिया कितना सुखद संयोग करा सकता है इसकी मिसाल होगी शिल्पी संग करण की शादी।
आज भी लोगों को याद है करण की कैटवॉक। उसे कोई पसन्द नहीं करता था। गोलू कालोनी का हीरो था, दौड़ हो या गुलेल से कंचे का निशाना उसका कोई जवाब नहीं था। अपने इसी फन से उसने रामायणी चाचा की साइकिल चोरी करते चोर की खोपड़ी खोल दी थी और तो और खेल दिवस पर दौड़ में भी वही बाजी मारता आया है। लेकिन शेर के इलाके में कोई बब्बर शेर भी तो आ सकता है, सो आ गया, सी. ओ. साहब का बेटा करण।
शिल्पी के घर के सामने कालोनी का अखाड़ा था। जहाँ पहलवान तो बैशाखी को भिड़ते लेकिन गोलू किसी न किसी से रोज़ भिड़ता था हीरो जो ठहरा। चौथी कक्षा का विद्यार्थी होकर भी वह आठवीं तक के लड़कों को कुछ नहीं समझता था। ये अलग बात थी कि पढ़ाई में उसका हाथ ज़रा तंग था।...