"दुनिया है इसका नाम"
जैसे ही दरवाज़े पर खट-खट हुई तो नलके के पानी-सी नम बूंदें, यादों के मटके से चूने लगीं। एक बोझ-सा मन पर, उस रोज़ पलंग से आतीं चुरपुर की आवाज़ें कुछ कम होतीं तो सुकून मिलता। अंधेरी रात में घड़ी की टिक-टिक सुनसान रास्तों पर पसरी गहरी नाउम्मीदी। उसकी आंखों की चमक से पिघलकर दुनिया का नामोंनिशान मिटने वाला हो जैसे।
कुछ देर रुकती तो उसकी बेचैनी जान पाती। रुक कर करती भी क्या? वो फूहड़ सारी उम्र उसके लालच का शिकार रही, हां वही, उसका प्रेमी! जो अनपढ़ जाहिल हो कर भी पढ़ी-लिखी पत्नी पा गया था। मुई वो थी ही ऐसी, कोई कितना भी समझाता- न जाने उस रिक्शे वाले में उसने क्या देखा।
घर से भागने की खबर सुनकर उसकी मां नंगे पैर ही सड़क पर...