बड़ी हवेली (डायरी - 15)
कमांडर आगे की कहानी सुनाता है "अगला सुबह हम उन्ही सिपाहियों के दल से अपना ख़ास 9 दोस्तों को बुलाया, वो सब मंझा हुआ शिकारी था फिर चाहे इंसान का शिकार हो या जानवर का। हम उनसे बताया कि हम एक योजना बनाया है जिसमें नगर का आस पास के इलाकों में British regiment को ख़ज़ाने के काम पर लगा दिया है, आस पास के नगर में हर खबरी को सोने का मूर्ति और कीमती शो पीस बनाने वाले पर नज़र रखना है और कोई भी ख़बर मिलते ही सीधा हमारे हेड क्वार्टर पर संपर्क करना है, हम लोग आज दोपहर को ही ख़ज़ाने की तलाश में अगले नगर का ओर निकलेंगे जंगल का रास्ता पकड़ कर , ये एक खुफिया मिशन होगा जिसमें शिकारियों का रूप धारण करना पड़ेगा, ब्रिटिश गवर्नमेंट का हर हेड क्वार्टर पर रिपोर्ट देना होगा जहां से हमलोगो को उस लुटेरे का जानकारी भी मिलेगा। उसके पास टनों सोने का अशर्फी था जिसे ले जाने में कम से कम पाँच घोड़ा गाड़ी लगेगा, वो शर्तिया इन सामानों को कम करके ही ले जाएगा इसलिए वह इन अशर्फी की संख्या कम करने का वास्ते इन्हें मूर्ति, आभूषण या शो पीस में बदलने के वास्ते उसे आकार देने वाले से मिलेगा, अगर हमारा अंदाज़ा ग़लत नहीं था तो वो लुटेरे जंगल के रास्ते नज़दीकी समुन्द्र तट के नगर की ओर जाएंगे और वहीं से उसका पीछा कर रहे हम सब मिलकर उसे दबोच लिया जायेगा।
ब्रिटिश हाई औथॉरिटीज़ के अलावा हमारा इस मिशन का जानकारी किसी को नहीं था इसलिए हर नगर में यही दिखाना था कि हम भारत में शिकार का वास्ते आया है ऐसे उन लुटेरों को भी यह यकीन हो जाता कि हम विदेश से आए शिकारी हैं। भारत में खबरें हवा की तरह फैलती थी ऐसे में लुटेरे को पता चल जाता कि हम लोग ब्रिटिश ईस्ट इंडिया के ऑफिसर हैं, इसलिए सबको यकीन दिलाना ज़रूरी था कि हम सब का जानवरों के सिर का trophy और खाल ही व्यापार है। ज़रूरत पड़ने पर नज़दीक के हेड क्वार्टर से सैनिक टुकड़ी भी मदद के वास्ते दे दी जाती ।
हमारा जांबाज़ साथी लोग इस मिशन पर अपना जान का बाज़ी लगाने को तैयार हो गया और हम सभी ने अपने सीनियर अधिकारियों से मिलकर इस मिशन पर जाने का अनुमति लिया । ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी हाई अथॉरिटीज़ के अधिकारियों को यही पता था कि ख़ज़ाना उस लुटेरे के ही पास है। औरंगजेब ने खुद ख़ज़ाने पर डांका डाला था ये सिर्फ हमको पता था पर ख़ुद औरंगजेब को ये नहीं पता था कि हमको सब पता है।
उधर औरंगजेब को ख़ज़ाने के बारे में पता लगते ही उसने गुस्से में ख़बर देने वाले का गर्दन धड़ से अलग कर दिया अपना तलवार का वार से । उसने तलवार बाज़ी में अच्छे अच्छों को धूल चटाया था। उसका तलवार बिजली के रफ़्तार जैसा चलता था। उसका क्रोध इतना बढ़ गया कि उसने अब अपने वालिद के सारे ख़ास समर्थकों का सफाया करने का फैसला किया। ऐसा करने पर बादशाह कामज़ोर पड़ जाते और औरंगजेब अपने बल और सैन्य ताकत से तख्त पर कब्ज़ा जमा लेता। पर इस योजना पर काम करने से पहले उसने अपने एक ख़ास मित्र को बुलवाया ताकि वो उस ख़ज़ाने को लूटने वाले का पता लगा सकें और उसका सफ़ाया कर ख़ज़ाना उसके पास ले आए। वो भारत के जंगलों और नगरों की गलियों से अच्छी तरह से वाकिफ था।
हम लोग दोपहर को अपनी योजना के हिसाब से जंगल का ओर निकल गए। जाने से पहले आखरी बार हम एमेलिया को अपने सीने से काफ़ी देर तक लगाए रहा। वो भी हमको कस कर जकड़े हुए थी, ऐसा लग रहा था कि हो सके दुबारा ना मिले, सो दो प्रेमी एक दूसरे से अलग ना हो जाएं इसलिए एक दूसरे को कस कर सीने से लगाए हुए थे और चुम्बन से एक दूसरे को अलविदा कह कर अलग हो गए। कोहिनूर हमारे ही पास था क्यूँकि एमेलिया के पास इसका रहना उसका जान पर आफ़त बन सकता था। एमेलिया भारत से जाते समय तक हमारे ही बंगले पर रुकी रही।
एक रात जंगल में बिताने के बाद अगले दिन हमलोगो के हाँथ सफलता लगा। हमारे दल के एक सदस्य को घोड़ों का लीद मिला। उसने घोड़े से उतरकर एक छोटी सी लकड़ी की छड़ी ज़मीन से उठाई, फिर उसे घोड़े के लीद में घुसा कर यह देखा की कितना गीला है। फिर उस लकड़ी की छड़ी को अपना नाक के पास ले जाकर सूँघ कर बोला "यह करीब नौ घंटे पहले का है", यह एक आम तरीका था ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के उन सिपाहियों का जो शिकार में और लुटेरों को ढूंढने के लिए इस्तेमाल किया जाता था। किसी जानवर का लीद हो या इंसानी मल समय के साथ इनमें बदलाव आता है, ये सूखने लगते हैं और इनकी गंध भी बदल...
ब्रिटिश हाई औथॉरिटीज़ के अलावा हमारा इस मिशन का जानकारी किसी को नहीं था इसलिए हर नगर में यही दिखाना था कि हम भारत में शिकार का वास्ते आया है ऐसे उन लुटेरों को भी यह यकीन हो जाता कि हम विदेश से आए शिकारी हैं। भारत में खबरें हवा की तरह फैलती थी ऐसे में लुटेरे को पता चल जाता कि हम लोग ब्रिटिश ईस्ट इंडिया के ऑफिसर हैं, इसलिए सबको यकीन दिलाना ज़रूरी था कि हम सब का जानवरों के सिर का trophy और खाल ही व्यापार है। ज़रूरत पड़ने पर नज़दीक के हेड क्वार्टर से सैनिक टुकड़ी भी मदद के वास्ते दे दी जाती ।
हमारा जांबाज़ साथी लोग इस मिशन पर अपना जान का बाज़ी लगाने को तैयार हो गया और हम सभी ने अपने सीनियर अधिकारियों से मिलकर इस मिशन पर जाने का अनुमति लिया । ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी हाई अथॉरिटीज़ के अधिकारियों को यही पता था कि ख़ज़ाना उस लुटेरे के ही पास है। औरंगजेब ने खुद ख़ज़ाने पर डांका डाला था ये सिर्फ हमको पता था पर ख़ुद औरंगजेब को ये नहीं पता था कि हमको सब पता है।
उधर औरंगजेब को ख़ज़ाने के बारे में पता लगते ही उसने गुस्से में ख़बर देने वाले का गर्दन धड़ से अलग कर दिया अपना तलवार का वार से । उसने तलवार बाज़ी में अच्छे अच्छों को धूल चटाया था। उसका तलवार बिजली के रफ़्तार जैसा चलता था। उसका क्रोध इतना बढ़ गया कि उसने अब अपने वालिद के सारे ख़ास समर्थकों का सफाया करने का फैसला किया। ऐसा करने पर बादशाह कामज़ोर पड़ जाते और औरंगजेब अपने बल और सैन्य ताकत से तख्त पर कब्ज़ा जमा लेता। पर इस योजना पर काम करने से पहले उसने अपने एक ख़ास मित्र को बुलवाया ताकि वो उस ख़ज़ाने को लूटने वाले का पता लगा सकें और उसका सफ़ाया कर ख़ज़ाना उसके पास ले आए। वो भारत के जंगलों और नगरों की गलियों से अच्छी तरह से वाकिफ था।
हम लोग दोपहर को अपनी योजना के हिसाब से जंगल का ओर निकल गए। जाने से पहले आखरी बार हम एमेलिया को अपने सीने से काफ़ी देर तक लगाए रहा। वो भी हमको कस कर जकड़े हुए थी, ऐसा लग रहा था कि हो सके दुबारा ना मिले, सो दो प्रेमी एक दूसरे से अलग ना हो जाएं इसलिए एक दूसरे को कस कर सीने से लगाए हुए थे और चुम्बन से एक दूसरे को अलविदा कह कर अलग हो गए। कोहिनूर हमारे ही पास था क्यूँकि एमेलिया के पास इसका रहना उसका जान पर आफ़त बन सकता था। एमेलिया भारत से जाते समय तक हमारे ही बंगले पर रुकी रही।
एक रात जंगल में बिताने के बाद अगले दिन हमलोगो के हाँथ सफलता लगा। हमारे दल के एक सदस्य को घोड़ों का लीद मिला। उसने घोड़े से उतरकर एक छोटी सी लकड़ी की छड़ी ज़मीन से उठाई, फिर उसे घोड़े के लीद में घुसा कर यह देखा की कितना गीला है। फिर उस लकड़ी की छड़ी को अपना नाक के पास ले जाकर सूँघ कर बोला "यह करीब नौ घंटे पहले का है", यह एक आम तरीका था ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के उन सिपाहियों का जो शिकार में और लुटेरों को ढूंढने के लिए इस्तेमाल किया जाता था। किसी जानवर का लीद हो या इंसानी मल समय के साथ इनमें बदलाव आता है, ये सूखने लगते हैं और इनकी गंध भी बदल...