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मतदान का मौसम...
#वोट
चाय की टपरी में आज काफी गहमा गहमी है। बनवारी लाल हाथ में अख़बार लिए पढ़ रहे और हर एक ख़बर पर चाय की चुस्कियों के साथ चर्चा हो रही। जैसे चुनाव के दल वैसे ही चाय की दुकान भी दो हिस्सों में विभाजित हो गई थी।

रविवार के शाम को अक्सर हीं इस चाय की दुकान पे हर उम्र के चाय के शौकिन का जमावड़ा रहता है...विशेष कर छात्रों की, जो भिड़ को बढ़ाने का काम कर रही थी।

बनवारी चाचा "नव चेतना" नामक समाचार पत्र में एक सम्मानित पत्रकार थे एंव अपने बेबाक अंदाज के कारण छात्रों में प्रसिद्ध थे...

हर शाम की तरह आज भी वो चाय के चुस्कियों के साथ अख़बार के प्रमुख मुद्दों पर छात्रों से रूबरू थे...

उन्होंने व्यंगात्मक लहजे में एक छात्र से पुछा...इसबार मतदान में "वोट" देने गाँव जा रहे हो?

कोचिंग से कहाँ समय मीलता है चाचा! एक तो वैकेंसी लेट से आता है और उपर से सिलेबस कोचिंग वाले समय से पुरा नहीं करते...बाहर भी पढ़ना पड़ता है और अपने रूम पर भी! छात्र ने जवाब दिया...

चाय कि चुस्की लेते हुए बनवारी चाचा ने कहा:
वो सब तो ठीक है पर तुमको हम पिछले हफ्ते लखनऊ में देखे थे!

लखनऊ में...वो एक दोस्त को परिक्षा दिलवाने गए थे, उस छात्र ने कुछ सोचते हुए जवाब दिया।

कौन सा परिक्षा? अभी तो किसी भी वैकेंसी के परिक्षा का अनाउंसमेंट नहीं हुआ है...!

छात्र झेंपते हुए कहा 'जाए दिजिए न चाचा...सच कहे तो घूमने गए थे',

सख्त लहजे में बनवारी चाचा ने कहा:
तुम लोगों को घर से पढ़ने के लिए भेजा जाता है और तुम लोग घुमने में लग जाते हो,
घुमते भी हो तो...आस-पास घुमने का समय नहीं रहता है सीधा "लखनऊ" जाते हो!
और 'मतदान' के समय बगल गाँव जाने में कोचिंग से समय नहीं मिलता है...बढ़िया है, हमारे देश का भविष्य!

पास में उपस्थित अन्य छात्रों ने 'बनवारी चाचा' को शांत कराते हुए कहा... चाचा पिछले इलेक्शन में हमलोग गाँव में हीं थे फिर भी "मतदान केंद्र" पर कहाँ गए थे...?

बनवारी चाचा ने पुछा काहे नहीं गए थे? बिमार थे? या पहचान पत्र नहीं था...?

हँसते हुए कुछ छात्रों ने उत्तर दिया न बिमार थे और पहचान पत्र भी है पर...घर पर हीं टी.वी. पे लाइव देख रहे थे!

इधर बनवारी चाचा के उपस्थिति ने चाय के दूकान पर छात्रों की उपस्थिति एंव उत्सुकता बढ़ा दी, चायवाले ने सबको चाय थमाने के साथ दूकान में बैठने के लिए कुछ और जगह बना दी...

उधर...उखड़े लहजे में बनवारी चाचा ने उन छात्रों से कहा: आलसी हो तुम सब! खिज़ते हुए उन्होंने भीड़ में से एक छात्र को पास बुला के ताबड़तोड़ लोकसभा एंव विधानसभा के 20-25 प्रश्न पुछ डाले...?

और उस छात्र ने सभी को हैरान करते हुए अप्रत्याशित तरीके से सभी प्रश्न के उत्तर सही दिए...

तभी भीड़ में से एक छात्र ने ताली बजाते हुए कहा:वाह! चाचा आपने तो कमाल कर दिया ये सभी प्रश्न किसी न किसी परिक्षा में पुछे गए हैं... और ये भाई साहब तो टाॅपर लगते हैं!

बनवारी चाचा ने मुस्कुराते हुए कहा वो सब तो ठीक है, कभी मेरा भी चयन UPSC के ईन्टरव्यू के लिए हुआ था...ये बात और है की सफलता नहीं मिला।

अपने मुद्दे पे वापस लौटते हुए बनवारी चाचा ने सभी प्रश्न का सही उत्तर दे रहे उस छात्र से पुछा वोटिंग की है कभी? छात्र ने झेंपते हुए उत्तर दिया नहीं...

बनवारी चाचा ने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा, ये लो... दिपक तले अँधेरा!
चाचा ने उस छात्र से फिर पुछा ऐसा क्यों? तुम्हारे उत्तर से तो लगता है कि मेहनतकश हो, पढ़ाई में भी अच्छे हो... तो फिर?

जी कभी वोट दिया नहीं और मेरे मित्र मंडली में सभी ऐसे हीं है... अब वहाँ उपस्थित सभी छात्र दो खेमे में बँट गए: एक वो जिन्होंने वोट दिया था और एक वो जिन्होंने वोट नहीं दिया था, पात्रता होने के वाबजूद वोट नहीं देने वालों कि संख्या अधिक थी!

बनवारी चाचा ने समझाते हुए सभी छात्रों को मतदान के महत्व को समझाया एंव मतदान के लिए प्रेरित किया।

शाम का वक्त रात्रि की ओर अग्रसर हो रहा था, बातचीत को विराम देते हुए बनवारी चाचा ने चाय वाले से कहा इस छात्र(जीसने सभी प्रश्न के उत्तर सही दिया था) के चाय का मूल्य मैं हीं दूंगा।

आप रहते हैं तो हमको भी काफी सीखने को मीलता है अगले साल मैं भी कम्पीटीशन में बैठूँगा... चायवाले ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया!

अवश्य! जाते हुए बनवारी चाचा ने भी मुस्कुराते हुए कहा....


© ucamit