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Long Distance Relationship
Long Distance Relationship, नाम से ही ज़ाहिर है, लंबी दूरी में बना रिश्ता, एक अलग ही अनुभव देता रिश्ता। समय और दूरी की विषमताओं के बावजूद दिलों की अनुभूति से जन्म लेता रिश्ता। और इस को बांध के रखने वाला इक मात्र सेतु मोबाइल फोन। दो अलग अलग जगहों पर रह रहे दो प्राणी जाने कौन सी भावना के मोहपाश में बंध जाते हैं, यश और आशी की तरह।

आजकल सोशल साइट्स का पूरा ब्रह्मांड हैं, यहाँ ना जाने कितने दिल, कितने दिमाग दिन और रात की परवाह किए बिना विचरते रहते हैं। यही कहीं ये जोड़ा *याशी* भी टकरा गया। स्वप्न सी लगती दुनिया में अपना ही अलग जहां बना लेता है हर जोड़ा यहाँ।

दो अनजाने, अपनी यथार्थ की दुनिया को पीछे छोड़, अपने वज़ूद को इक नयी पहचान में ढाल कर इक नए सफ़र पर निकले थे, टक्करा गए यहां, और बस दो चार दिन की इधर उधर की बातों के बाद, सजाने लग गए अपनी दुनिया, दिन की शुरुआत इक दूसरे को गुड मोर्निंग के संदेश भेज कर होती, क्या खाया? क्या पिया? क्या पहना? से लेकर घर की तकरीबन हर बात की चर्चा होती।

बाहर की दुनिया कटती रही और यहां की दूरीयां सिमटती गयी, दो अनजाने कब इक दूसरे के मोहपाश में बंधते गए कि ये भी भूल गए कि उन्होंने तो अपनी असली पहचान पर आवरण डाला हुआ था। बिन बात किए दिन पहाड़ लगता, और जब बात होती तो वक़्त के साथ साथ अंतरंगता की सीमाएं भी लांघ ली जाती। बातें सहज होकर, मन ने इक दूसरे पर अधिकार मान लिया।

अब मिलने के स्वप्न, स्पर्श की रूमानियत, और जिन्दगी भर साथ निभाने की प्लानिंग में घंटों बीतने लगे। जो मन पहले साथी के फोन ना उठाने से घबराता था अब विचलित होने लगा, जो मन बात कर लेने से बहल जाया करते थे अब शंकित होने लगे।

रोमांस के अह्सास इक काल्पनिक सुरंग से बाहर आने लगे, अब तरंगे बासी होने लगी। दिन के 10 फोन सिमट कर दो रह गए और उसमे भी, ज़्यादातर बात... और बताओ! मे गुजरने लगी। कोई आ गया या बॉस का फोन आया, ये कह कर फोन बंद करने का सिलसिला चल निकला,

पहले की तरह अब रूठे हुए को मनाने की मनुहार ख़तम ही हो गयी क्युकी अब ना आशी का रूठने का मन होता ना यश का उसको चिढ़ाने का। अब कभी कभार इक मैसेज आ जाता कि बहुत दिन हो गए थे, बिजी हू, सोचा मेसेज भेज कर हाल पता करू।

कहां गया वो खुमार, प्यार वो दिल ❤️ और मुहब्बत वाले मैसेज? ये तो ENO जैसा प्यार हुआ, डकार आते ही जलन ख़तम।

सिर पर चढकर बोलने वाला प्यार गूंगा हो जाता है। अब ये मौसमी मुहब्बत साल में इक दो महीने ही भाती है। या तो धीरे धीरे मौसम खत्म होने की तरह खत्म या भयंकर झगडे की गड़गड़ाहट और अकाउंट ब्लॉक। किस्सा ख़तम।

ज्यादा ज्ञानवर्धक बातें लिखने का फायदा नहीं क्यूंकि ये वो पेड़ की तरह यहा आए साल फल लगता तो बंधु लोग, बहुत सम्हाल कर जिंदगी की पींग झूले।


आभार
कविता खोसला





© कविता खोसला