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"भूमिका"
"भूमिका"
भूमिका एक साधारण सी लड़की थी, रंग रूप में भी और पढ़ाई में भी, लेकिन उसके सांवले रंग में एक अजीब सी कशिश थी।
दूसरी ओर विवेक एक अच्छा खासा हेंडसम और क्लास का टॉपर लड़का ।
हाईस्कूल खत्म होने से पहले तो विवेक पूरी तरीके से भूमिका के पिछे पागल हो चुका था और ये बात अब तो सारी स्कूल को भी पता चल गई थी और ऐसा भी नही था की भूमिका को विवेक पसंद नही था।
लेकिन फायनल exam के पहले दोनो के बीच में कोई ऐसी बात हो गई,की हाईस्कूल खत्म होने के बाद वो दोनो एकदूसरे को कभी नहीं मिल पाए।
और आज पूरे दस साल बाद शहर के नामांकित कैंसर स्पेसियालिस्ट डॉ,विवेक शर्मा के केबिन में आकर रिसेप्शनिस्ट बोली,
सर कोई भूमिका नाम की क्रिटिकल पेशेंट बिना अपॉइंटमेंट आकर आपसे मिलने की जिद कर रही है।
नाम सुनकर एक वक्त तो डॉक्टर विवेक शूनमस्तक हो गए। थोड़े स्वस्थ होकर रिसेप्टिनिस्ट को उस पेशेंट को केबिन में भेजने की सूचना दी।
जी हा, वो वोही भूमिका ही थी, भूमिका केबिन में आई ।
डॉ विवेक को देखकर उसके निस्तेज चेहरे।और ,अंदर तक चली गई आंखो में थोड़ी सी चमक आई।
वो दोनों अब एक दूसरे को बिलकुल पहेचान गए थे।
शुरुआती फॉर्मल बातो के बाद,बिलकुल कमजोर सी दिखती भूमिका की अपने साथ में लाई रिपोर्ट फाइल्स से डॉ विवेक को पता चल गया की अब तक वो "मिस भुमिका" ही है।साथ में दिल दहला देनेवाली बात ये भी थी की,
she is suffering from last stage of cancer.

रूटीन चेक अप एंड कुछ दिनों की मेडिसिन प्रेस्क्रिप्शन लेकर भूमिका वहा से चली गई।
उस दिन के बाद Dr विवेक ने भूमिका को कभी नही देखा। पंद्रह दिन बाद खबर मिली भूमिका अब इस दुनिया में नहीं रही।
खबर सुनते ही अपने ही केबिन में अकेले बैठे डॉ. विवेक की आंखे भर आई और हाईस्कूल छोड़ने से पहले भूमिका द्वारा की कई वो बात भी याद आ गई जिसमे भूमिका ने विवेक को कहा था,..
"देखो यार विवेक,ऐसा नहीं की में तुम्हे पसंद नही करती लेकिन तुम मुझ से ज्यादा अपने कैरियर अपनी पढ़ाई पर फोकस करो। यू तुम्हारा मेरे पीछे इस कदर पागल होना मुझे बिलकुल पसंद नहीं है।"

बस भूमिका की इतनी सी बात विवेक के दिल को हर्ट कर गई और उस दिन के बाद विवेक ने अपना पूरा फोकस अपनी पढ़ाई पर लगा दिया था और वो शहर के जानमाने डॉक्टर्स में से एक है।
आज अपनी ही केबिन में भारी सोच में बैठे डॉ. विवेक को उनकी assistant डॉ. मिस अंकिता ने ऐसे ही पूछ लिया
"सर,मुझे लग रहा है आज आप कुछ अपसेट से हो l"

अचानक पूछे गए सवाल से स्वस्थ होकर डॉ विवेक ने इमोशनल होकर अपनी assistant से कहा,

डॉ, अंकिता,कभी कभी हमारे जीवन सफर में
कुछ मसाफिर ऐसे भी मिलते है जो अंत तक हमारा साथ तो नही दे पाते ।
मगर हा , मंजिल का पता जरूर बताकर जाते हे। वो कभी भी हमे हमारे रास्ते से भटकने नहीं देते।
मेरे इस जीवन सफर की, ऐसी ही एक हमसफर मुसाफिर थी...
"भूमिका"