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मैं भूख को जानती हूं।
हम मुनष्य ख़ुद को हर मामले में जानवरों से बेहतर समझते हैं और समझदार भी। कहते हैं कि हममें और पशुओं में एक मात्र विभेद "समझ" का ही है लेकिन फ़िर भी हम मनुष्यों से अधिक नादानी शायद ही कोई करता हो। जानें क्यों सब कुछ जानते, बूझते, देखते, समझते भी हम क्यों कुछ नहीं समझ पाते! उदाहरण के लिए अनाज को ही ले लें.. वैदिक साहित्य में अन्न को ब्रह्मा की संज्ञा दी गई है "अन्न वै ब्रह्म"। अगर हम सबको समान रूप से वेदों की सामान्य जानकारी नहीं भी हो तो कम से कम हम सबको "अन्नपूर्णा देवी" के रूप में अन्न के दैवीकरण के माध्यम से अन्न की महत्ता का अंदाज़ा तो होगा ही और अगर ये भी नहीं तो हम सब के बड़े बुजुर्गों ने कभी ना कभी हम सबसे रोटी (अन्न) ना फेंकने की ताकीद की ही होगी और ना मानने पर "अन्न सड़ने पर शाप/श्राप देते हैं" कह कर डराया भी होगा। लेकिन हम तो हम ठहरे.. सब कुछ जान कर अंजान बनना और जिस डाल पर बैठें हैं उसे ही काटना तो कोई हमसे सीखे। भारत...