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1857 भाग १
आखिर क्या डर है जिसकी वजह से भारत के नौजवानो को भारत का सही इतिहास नहीं बताया जाता है? मुझे पूरा विश्वास है कि आज जब आप इस लेख को पढेगे तो आप मेरे इस मत से सहमत हो जायेगे कि इतिहास का सही और गलत बताया जाना देश के भविष्य निर्माण में कितनी मदद कर सकता हैं

1857 के स्वतंत्रता आंदोलन के अनजाने तथ्य : 1857 सैनिक विद्रोह नहीं अपितु आजादी का जन आँदोलन था

1857 की क्रांति एक क्रांति है जिसे इतिहास ने गाया नहीं भारत का इतिहास बताता हैं की प्रथम संग्राम की ज्वाला मेरठ की छावनी में भड़की थी किन्तु इन ऐतिहासिक तथ्यों के पीछे एक सचाई गुम है, वह यह कि आजादी की लड़ाई शुरू करने वाले मेरठ के संग्राम से भी 15 साल पहले बुन्देलखंड की धर्मनगरी चित्रकूट में एक क्रांति का सूत्रपात हुआ था।

पवित्र मंदाकिनी के किनारे गोकशी के खिलाफ एकजुट हुई जनता ने मऊ तहसील में अदालत लगाकर पांच फिरंगी अफसरों को फांसी पर लटका दिया। इसके बाद जब-जब अंग्रेजों या फिर उनके किसी पिछलग्गू ने बुंदेलों की शान में गुस्ताखी का प्रयास किया तो उसका सिर कलम कर दिया गया।

इस क्रांति के नायक थे आजादी के प्रथम संग्राम की ज्वाला के सीधे-साधे हरबोले।

संघर्ष की दास्तां को आगे बढ़ाने में महिलाओं की ‘घाघरा पलटन’ की भी अहम हिस्सेदारी थी।

आजादी के संघर्ष की पहली मशाल सुलगाने वाले बुन्देलखंड के रणबांकुरे इतिहास के पन्नों में जगह नहीं पा सके, लेकिन उनकी शूरवीरता की तस्दीक फिरंगी अफसर खुद कर गये हैं। अंग्रेज अधिकारियों द्वारा लिखे बांदा गजट में एक ऐसी कहानी दफन है, जिसे बहुत कम लोग जानते हैं।

गजेटियर के पन्ने पलटने पर मालूम होता है कि वर्ष 1857 में मेरठ की छावनी में फिरंगियों की फौज के सिपाही मंगल पाण्डेय के विद्रोह से भी 15 साल पहले चित्रकूट में क्रांति की चिंगारी भड़क चुकी थी। दरअसल अतीत के उस दौर में धर्मनगरी की पवित्र मंदाकिनी नदी के किनारे अंग्रेज अफसर गायों का वध कराते थे।गौमांस को बिहार और बंगाल में भेजकर वहां से एवज में रसद और हथियार मंगाये जाते थे। आस्था की प्रतीक मंदाकिनी किनारे एक दूसरी आस्था यानी गोवंश की हत्या से स्थानीय जनता विचलित थी, लेकिन फिरंगियों के खौफ के कारण जुबान बंद थी।कुछ लोगों ने हिम्मत दिखाते हुए मराठा शासकों और मंदाकिनी पार के ‘नया गांव’ के चौबे राजाओं से फरियाद लगायी, लेकिन दोनों शासकों ने अंग्रेजों की मुखालफत करने से इंकार कर दिया। गुहार बेकार गयी, नतीजे में सीने के अंदर प्रतिशोध की ज्वाला धधकती रही।...