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दिल का रिश्ता।(part 1)
आज लान में लगे पौधे फिर से मुस्कुरा रहे थे ।और नीम का पेड़ जो कि एक साल पहले ही इस घर का हिस्सा बना था इस तरह से झूम रहा था जैसे कि मौसम ए बहार आ गई हो।सब खुश थे पत्तियां मुस्कुरा रही थीं तो कलियां खिलखिला रही थीं...और वो खुश भी क्यूं ना हों!
आज इस घर में फिर से वह लौट आई थी जो इनसे बहुत प्यार करती थी।बच्चों की तरह इनका खयाल रखती थी।अपनी हर बात चाहे वो खुशी की ही या गम की वो इन्हीं से तो बांटती थी ,और ये लोग भी कितनी राज़दारी से उसकी बातें सुनते थे।
लेकिन क्यों?
ये सवाल उसने पहले क्यों नहीं किया?क्यों उसको पहले समझ नहीं आया कि ये सिर्फ पेड़ पौधों और इंसान का रिश्ता नहीं था ,ना ही ये सिर्फ लेन देन का रिश्ता था कि उन्होंने अपना साया अपना फल और फूल दिया और बदले में इंसान ने उन्हें पानी और उनकी ज़रूरियात की कुछ और चीज़े उन्हें थमा दी ।
ये तो उनके बीच वो जज़्बा था जो कि अगर इंसान तलाश करे तो शायद अपनी पूरी जिंदगी गंवा दे उसको ये हासिल ना हो ,अपना सब कुछ लुटा दे लेकिन फिर भी उसके हाथ खाली रह जाएं ।क्यूंकि ये वह जज़्बा है जो हर जगह हो कर भी नहीं होता ।
क्यूंकि इसे तो सिर्फ महसूस किया जा सकता है ।"दिल का जज़्बा" "दिल का रिश्ता "
लेकिन उसने कब समझा था दिल को ,दिल की बातों को ,उन एहसास को,उन जज्बों को जो इस दुनिया को खूबसूरत बना देते हैं।जो बहुत सारे अजनबियों को अपना बना देते हैं।
वह तो हमेशा उन लोगों के चले जाने पर ,उन लोगों के बदल जाने पर कुढ़ती रही जिसे कभी वह अपना बना चुकी थी ......नहीं ...शायद जिसे दुनिया अपना कहती थी ।उसे हमेशा इसी बात की तो शिकायत रहती थी कि जब" वह अपने होते हैं तो वो फिर अपने क्यों नहीं हैं" और इस चक्कर में उसने कितने ऐसों को नज़रंदाज़ कर दिया था जो उसको अपना समझते थे।

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आज उसकी अम्मी hospital से घर आ चुकी थीं वो पहले से काफी स्वस्थ लग रही थीं।शायद वो दिल से खुश थीं।इसलिए उनके दिल की ताजग़ी उनके चेहरे को भी ताज़ा कर रही थी ।
वह खूबसूरत तो पहले भी थीं लेकिन उनकी ये खूबसूरती उसने कई साल पहले देखी थी ।अब तो उनका वो वाला चेहरा उसको अच्छे से याद भी नहीं था।
लेकिन आज वह फिर से ख़ूबसूरत लग रही थीं।बहुत खूबसूरत और बहुत मुत्मयीन मानो उनकी दिल की बीमारी ने उनके दिल को ख़राब करने की बजाए उसको फिर से नया कर दिया था।
उसके चाचा चाची सब उसकी अम्मी को देखने के लिए आ रहे थे ।लेकिन उसकी सोच .... उसकी सोच past के दरवाज़े को खोल कर बहुत दूर कहीं पिछे निकल गई थी ।क्या ढूंढने ? वह जानती थी।
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( past )

वह एक नौ साल की बच्ची जिसका नाम "सबा" उसके माता पिता ने बड़े स्नेह के साथ रखा था ।सबा यानि कि सुबह की ठंडी हवा दिल और दिमाग को ताजग़ी ,खुशी देने वाली हवा ।

उस दिन उसका जन्म दिन था ।वो बहुत ही खुश थी ।सुबह आंख खुलते ही उसने अपने कमरे में बहुत सारे gifts पाए थे। चॉक्लेट, खिलौने बहुत सारे जो उसके चाचा उसके लिए लाए थे ।
और चाची उसके लिए बहुत प्यारा सा white frock लाई थीं।जिसके साथ एक प्यारा सा crown 👑 भी था ।
ओह! कितनी प्यारी लग रही थी वह,
किसी प्यारे से महल की प्यारी सी छोटी शहजादी।
सबा अपना फ्रॉक पहने उछलते कूदते नीचे आ रही थी क्यूंकि वो जानती थी कि उसके बाबा जानी बाहर garden में होंगे।और ज़रूर उसके लिए फूलों का हार बना रहे होंगे ।वह उनको छुप कर देखना चाहती थी ।क्यूंकि सारे उपहारों में उसे अपने बाबा जानी का हार सब से ज़्यादा अच्छा लगता था जिसे उसके जन्मदिन पर उसके बाबा जानी उसके लिए बनाते थे।

ओह!वह दरवाज़े पर किसी से टकराई...

To be continued.

© fayza kamal