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उपनिषद(दशोउपनिषद)भाग 1
उपनिषद भाग 1
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उपनिषद (रचनाकाल 1000 से 300 ई.पू. लगभग)[1]कुल संख्या 108। भारत का सर्वोच्च मान्यता प्राप्त विभिन्न दर्शनों का संग्रह है। इसे वेदांत भी कहा जाता है। उपनिषद भारत के अनेक दार्शनिकों, जिन्हें ऋषि या मुनि कहा गया है, के अनेक वर्षों के गम्भीर चिंतन-मनन का परिणाम है। उपनिषदों को आधार मानकर और इनके दर्शन को अपनी भाषा में रूपांतरित कर विश्व के अनेक धर्मों और विचारधाराओं का जन्म हुआ। उपलब्ध उपनिषद-ग्रन्थों की संख्या में से ईशादि 10 उपनिषद सर्वमान्य हैं। उपनिषदों की कुल संख्या 108 है। प्रमुख उपनिषद हैं- ईश, केन, कठ, माण्डूक्य, तैत्तिरीय, ऐतरेय, छान्दोग्य, श्वेताश्वतर, बृहदारण्यक, कौषीतकि, मुण्डक, प्रश्न, मैत्राणीय आदि। आदि शंकराचार्य ने जिन 10 उपनिषदों पर अपना भाष्य लिखा है, उनको प्रमाणिक माना गया है।

उपनिषद की परिभाषा (विभिन्न मत)
ब्राह्मणों की रचना ब्राह्मण पुरोहितों ने की थी, लेकिन उपनिषदों की दार्शनिक परिकल्पनाओं के सृजन में क्षत्रियों का भी महत्त्वपूर्ण भाग था। उपनिषद उस काल के द्योतक हैं जब विभिन्न वर्णों का उदय हो रहा था और क़बीलों को संगठित करके राज्यों का निर्माण किया जा रहा था। राज्यों के निर्माण में क्षत्रियों ने प्रमुख भूमिका अदा की थी, हालांकि उन्हें इस काम में ब्राह्मणों का भी समर्थन प्राप्त था। डॉ. राधाकृष्णन के अनुसार उपनिषद शब्द की व्युत्पत्ति उप (निकट), नि (नीचे), और षद (बैठो) से है। इस संसार के बारे में सत्य को जानने के लिए शिष्यों के दल अपने गुरु के निकट बैठते थे। उपनिषदों का दर्शन वेदान्त भी कहलाता है, जिसका अर्थ है वेदों का अन्त, उनकी परिपूर्ति। इनमें मुख्यत: ज्ञान से सम्बन्धित समस्याऔं पर विचार किया गया है।[२]

इन ग्रन्थों में परमतत्व के लिए सामान्य रूप से जिस शब्द का प्रयोग किया जाता है, वह है ब्रह्मन्। यद्यपि ऐसा माना जाता है कि ‘यह’ अथवा ‘वह’ जैसी ऐहिक अभिव्यंजनाओं वाली शब्दावली में यह वर्णनातीत है और इसीलिए इसे बहुधा अनिर्वचनीय कहा है, तथापि किसी भांति इसका तादात्म्य आत्मा अथवा स्व से स्थापित किया जाता है। उपनिषदों में इसके लिए आत्मन् शब्द का प्रयोग किया गया है। अत: औपनिषदिक आदर्शवाद को, संक्षेप में, ब्रह्मन् से आत्मन् का समीकरण कहा जाता है। औपनिषदिक आदर्शवादियों ने इस आत्मन् को कभी ‘चेतना-पुंज मात्र’ (विज्ञान-घन) और कभी ‘परम चेतना’ (चित्) के रूप में स्वीकार किया है। इसे आनंद और सत् के रूप में भी स्वीकार किया गया है।[३]

Note:- 1.दशोउपनिषद पर ये लेख बहुत बड़ा है इसलिए हमने दो भागो में बंटा है।पहली ये और इसका दूसरा भाग इसके बाद पोस्ट करूंगी।
2. कवर इमेज में दी गई तस्वीर पूरी नहीं आने के कारन शॉर्ट ही अवेलेबल हो पा रही हैं।इस्का हो सके तो पूरा चित्र Quote मे पोस्ट कर दूंगी।
3. दशोउपनिषद सभी इच्छुक होते हैं पढ़ने के लिए एक छोटा सा प्रयास आप तक इतने बड़े भाग को आसान शब्दों में प्रस्तुत करने की।

धन्यवाद🙏✨
© SunitaShaw