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"कंटीली झाड़ियां" भाग-४
अमिता वो हरी किताब देखकर बहुत विस्मित हुईं, उसने वहीं एक आराम कुर्सी को अपनी ओर खींचा और उसके प्रथम पृष्ठ को पलटा तो उस पुस्तक में क्ई हतप्रभ करने वाली बातों से उसका सामना हुआ। पूरा वृत्तांत जो उसने पढ़ा उसका संक्षेप में वर्णन ये है...... ये कहानी मेरी है यानी भुवनेश्वर कुमार शर्मा की है,मैं एक जमींदार हूं और जमींदारी हमारे खानदान में पुरखों से चला आ रहा है मैं ऐसा नहीं कह सकता क्योंकि सुना है कि मेरे परदादा के दादा जी कुम्हार थें दादाजी भी मेरी तरह लिखते थे, उनकी डायरी से पता चला है कि उनका नाम सारंग कुमार शर्मा था लेकिन वो बहुत मेहनती थें और एक दिन किसी स्त्री ने उनके सारे बर्तन शहर जाकर बेंच दिए और उन्हें बहुत सी मोहरे दीं...