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बुझे हुए पटाखे
काली पूजा ही हमारे यहां दीपावली हुआ करती है । दुर्गा पूजा के ठीक २०वें दिन । दुर्गा पूजा पर मिले नए कपड़ों को दुबारा सहेजकर काली पूजा के लिए रख दिया जाता था । विजयादशमी का दिन हमारे लिए काफी खुशनुमा भी हुआ करता और उदासी लिए भी । खुशनुमा इसलिए कि उसी दिन बड़ों के पैर छूने पर पगड़ी यानी मेले घूमने के पैसे मिला करते और उदासी इसलिए कि मेला अब खत्म । दसों दिन खाली जेब मेला घूमने के बाद दशमी में कुछ नए सिक्कों की खन - खनाहट से हमारे चेहरे पर जो रौनक होती उसी की चकाचौंध से मेले गुलज़ार हुआ करते थे । दशमी के दिन नारियल के लड्डू और गुड़ वाली खोई का नायाब स्वाद वो भी नए सिक्कों के भारीपन लिए हमारे लिए एक सल्तनत के सरदार होने जैसा हुआ करता । खैर दशमी की जादू भरी रात पलकों में बीत जाती और मेला सिमटने के कगार पर हुआ करता ।

अब हमें रौशनी के पर्व काली पूजा का बेसब्री का इंतजार हुआ करता । सच तो यही है कि हमें पूजा से ज्यादा बारूद की वो गमगमाती गंध लेने का ज्यादा ही इंतजार रहता । पटाखों में पैसे...