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(भाग-1; सिया और साहिल का क्या रिश्ता?)

जिंदगी सबकी अपनी एक किताब है। सबका अपना एक हिसाब है। पेन अपने हाथ में कब आयेगा कब जाएगा कुछ पता नहीं है। इसी छिना झपटी में सारी उम्र निकल जाती है। ये छिना झपटी चलती है इसांन और हालात के बीच। हालात शुरू से ही पेन इसांन के हाथ से छीनता रहता है। हालात किताब में कुछ ऐसे पन्ने लिख डालता है जो कहानी को ही बदल कर रख देते है। इसान इससे आगे की मनचाही कहानी बनाने की कोशिश करता रहता है। किसी तरह से हालात के पन्नों से अपने सपनों के पन्नों की तरफ कहानी को लिखते जाता है। इतने में हालात वापस आ कर पेन झपट लेता है और मुस्करा कर इसान की तरफ देखता है और कहता है। 'अब ले जा के दिखा कहानी को अपने सपनों और खुशियों की तरफ।'

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"अगर अपनी जिंदगी की किताब को खुद लिखना चाहते हो तो हर बार हालात के हाथों से पेन को छिनना होगा…... और बेशक छीनोंगे भी।"
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ये कहानी है सिया और साहिल की।
सिया और साहिल दोनों बहन भाई है। साहिल की अभी उम्र 26 साल है। और उसकी पूरी body से पेरालाईज है। सिया साहिल से 3 साल बड़ी है और सिया 10 साल से साहिल की देखभाल कर रही है।

वो कहते है ना कि किसी चीज को सिद्दत से चाहो तो पूरी कायनात उसे तुमसे मिलाने की साजिस में लग जाती है। लेकिन जब किसी चीज को चाहने वाला खुद खुदा हो तब भी क्या साजिस की जरूरत पड़ती है?

साहिल को Limb-gridle Muscular Dystrophy  था।  जिसमे शुरू में पैर कमजोर हो जाते है। इससे इंसान के चाल-ढाल में से चाल पूरी तरह से बदल जाती है। जिससे लोगो का इस बिमारी से पीड़ित व्यक्ति के प्रति चाल-चलन भी बदल जाता है। इस बिमारी की एक खाशियत है जो पीडत को कभी बोर नहीं होने देती है। क्योंकि ये Progressive disability है, जो वक्त के साथ बढती रहती है। 5 साल की उम्र से दिखाई देने लगती है और 15 साल की उम्र तक बहुत हद तक घेर लेती है। और फिर उम्र भर बढ़ती हुई शरीर के अलग-अलग अंगों में निरंतर कमजोर करती रहती है।

तो जब 5 साल की उम्र में घरवालों को साहिल में बीमारी के प्रभाव दिखाई दिए तब साहिल को लेकर बहुत भटके लेकिन कुछ इलाज नहीं हुआ। वैसे इसी वजह से साहिल की लाइफ में मजे थे। रोज नई-नई जगह घूमने और खाने को मिलता था।

फिर सालों के बाद जब साहील 8-9 साल का हुआ तो बिमारी का प्रभाव हाथों में आने लगा। तब घर वालों की भाग दोड़ फिर शुरू हो गई। बेचारों ने खोजी कुते की तरह एक भी मन्दिर, मस्जिद मीनार नहीं छोड़ी। तात्रिक, झाड़े फूंक से लेकर अंग्रेजी-देशी सारे वैद छान मारे। लेकिन फिर भी कुछ नहीं हुआ। इसी प्रक्रिया में साहिल रोज-रोज नए सफरो का स्वाद ले रहा था। बस की विंडो साइड से अपने बाल उड़ाते हुए इन सफर के पलों में रंजा रहता था। पास बैठे मां-बाप को उसके भविष्य की फ़िक्र थी और उसे वर्तमान में जीने से फुर्सत नहीं थी।

उसे हर बड़े भगवान के चरणों में ले जाया जाता था। जिनके लिए मेला भी बड़ा ही लगता था। साहिल ने बचपन में इन मेलों का खूब मजा लिया। जहाँ सिया को कंही जाने का मौके तक नहीं होता था, वहीँ साहिल के लिए तारीखे एक साल पहले ही बुक हो जाती थी। साहिल को खुद ही नहीं पता होता था कि कब स्कूल से तीन चार दिनों की छुटिया मिल जाए। और कौनसा खिलौना उसके हाथ में हो। 

  साहिल का बाप साहिल को अपने पैरो पर करने के लिए घंटो के सफर और मन्दिर की में लगी लाइन में तकलीफे देख कर भगवान के चरणों तक पहुंचाता था। भगवान से साहिल के लिए मिनते मांगता था।  लेकिन साहिल के ध्यान में तो एक विशेष खिलौना होता था जो ले कर जाना था।

 साहिल ध्यान में ज्यादा जोर उस खिलोने पर ही देता था। शायद इसी लिए भगावन ने हाथ-पैरों की दिक्कत को कभी सीरियसली ही नहीं लिया। 
और हर बार उसे उसका मनचाहा खिलौना दिलाने में मदद कर चलता कर दिया। 

हालांकि एसा भी नहीं था कि भगवान जी ने कोई तथास्तु-तथुस्तु कहा हो और आसानी से खिलौना मिल गया हो। साहिल को भी अपनी तरफ से भी पूरी कोशिश करनी पडती थी। मेले में भरी दोपहरी छोटी जान को जिद से खड़ा रहना पड़ता था, रोना, चिल्लाना भी पड़ता था। कई बार उसके साथ थोड़ी बहुत मार-पीट भी हो जाती थी। लेकिन एक बैचारे को सबके सामने पीटना आसान थोड़े ही था। मतलब कि 99 प्रतिशत मामलों में साहिल की मनोकामना पूरी हो जाती थी। 


गुजरते वक्त के साथ साहिल अब 12 साल का हो चुका था। अब उसे अहसास होने लगा था कि असल  माजरा क्या है। धीरे धीरे लोगो के सामने उसका व्यवहार बदलने लगा। हालांकि दोस्तों और परिवार के लोगो के साथ साहिल अब भी वहीँ था। दिनों दिन शरीर थोड़ा और कमजोर होने लगा। ढलान और सीढ़िया उसे जानी दुश्मन लगने लगी। उसे लगता ये अभी मुझे गिराए अभी मुझे गिराए गी। लेकिन वह उन्हें पार कर जाता था।

 4-5 साल में साहिल अंदर और बाहर दोनों से बदलने लगा। उसका शरीर और ज्यादा कमजोर होने लगा। दोस्तों और परिवार को छोड़ कर उसके अंदर दुसरो के सामने ही जाने में डर लगने लगा। चलते चलते क्रेश लेंडिग होने लगी। उसे पता ही नहीं चलता था कि कचरे का कौनसा तिनका उसके गिरने का कारण बन जाएगा। 

साहिल का मजाक वाला स्वभाव कभी नहीं बदला लेकिन डर, बुरी सम्भावनाओं और अनिश्चितताओं ने उसे अंदर से बिल्कुल डरपोक बना दिया था।

घर की चार दिवारी के अन्दर रहने के कारण उसे बाहर की दुनिया से एक प्रकार का डर बैठ गया है। वह अपनी हर गतिविधि को सबके सामने रखने से डरता है।

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फिर एक कार दुर्घटना ने साहिल की हालत को और भी बदतर कर दिया। इस दुर्घटना में साहिल को छोड़ कर परिवार के बाकि सभी लोगो की मौत हो गई। सियाउ घर पर थी। इसलिए पूरे परिवार में सिया और साहिल दो ही बचे। 
साहिल की जान तो बच गई। लेकिन उसका पूरा शरीर पैरलाइज हो गया। एक साल तक अस्पताल में रहने के बाद वह स्वस्थ हो गया लेकिन उसकी जिंदगी से बहुत कुछ जा चुका था और सबकुछ बदल चूका था। 

 जो भी थोड़े साहिल के दूर के रिश्तेदार थे वे धीरे-धीरे दूर होते-होते हुए कुछ ही सालों में दिखना ही बन्द हो गए और पला झाड़ गए।

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 सिया ने सारे घर की ज़िम्मेदारी को सँभाल रखा है। सारे खर्चो को वह बड़े मुश्किल से संतुलित रखने की कोशिश करती है। वह साहिल के लिए सब कुछ त्यागने को तैयार है। सिया को उम्मीद है कि साहिल कुछ हद तक सही हो सकता है। लेकिन साहिल और सिया दोनों ही जानते है कि ये कभी नहीं होने वाला है। 

  साहिल स्वभाव से मजाकिया किस्म है। सिया का स्वभाव थोड़ा उखड़ किस्म का है। सिया के पास हर बात का दो टुक जवाब होता है। जो साहिल को पसंद नहीं है। 

पिछले 10 सालों में साहिल ने बहुत कुछ सहा है। हर बार सिया बुरे वक्त की बराबर हकदार बनी है। जैसे भी दिन रहे हो साहिल-सिया ने ख़ुशी-ख़ुशी एक दुसरे के साथ बिताएं थे। हर छोटी-मोटी ख़ुशी में दिल खोल कर हंसे थे। 

लेकिन बचपने से होते आए हादसों के कारण साहिल दिल से बिल्कुल कमजोर हो चुका है। वह कुछ भी एसी ख्वाहिस रखने की हिम्मत नहीं कर पाता है जो दुसरो के लिए मुस्किल पैदा करे। और सबसे महत्वपूर्ण कि सिया को अतरिक्त महनत न करनी पड़े।

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सिया वो इसान भी है जिस पर बचपन से साहिल को वकलांग करने का इल्जाम लगाया जाता रहा है। हवाओं में प्रचलित बातों के अनुसार जब बचपन में सिया साहिल को घर से बाहर खेल खिलाने के लिए अपनी गोद में ले जाया करती थी उस वक्त सिया साहिल को ऊँचे चौक से निचे गिरा दिया था। जिससे साहिल की रीढ़ की हड्डी में चोट आ गई। कुछ अफवाहे तो ये भी थी कि सिया ने साहिल के पैर पर पैर रख दिया था। 

साहिल इस बात पर सिया को अब भी ब्लैकमेल करता है। उस पर दबाव बनता है। लेकिन सिया ये मानने को तैयार नहीं है। वह कहती है कि ये सब झूठ है। उसे सब याद है उसने कुछ नहीं किया था। साहिल का ये हाल उसकी किस्मत की वजह से हुआ है और शायद कोई इंजेक्शन की वजह से जो उसे बचपन में लगाया गया था।
साहिल हर बार ये सब सिया का किया धरा बता कर उसे ताना मारता है। सिया का भी सीधा सा जवाब होता है कि वो एक्सीडेंट तो मैंने नहीं करवाया था। इस पर भी साहिल का जलेबी से सीधा जवाब होता है कि एक्सीडेंट भी तो अप्रत्यक्ष रूप से सिया की बचपन की ऐतिहासिक गलती का परिणाम है।

,,,,,,जारी,,,,,

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