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बातें जिंदगी की
ये जो कुछ भी लिख रहा हूं मेरी गुजरती हुईं जिंदगी ने बताया है सिखाया है।बचपन के दिनों में जब हम थे हम सब को कुछ भी पता नहीं होता था,अजब सपने होते थे, ना कोई फ़िक्र होती थीं,ना ही मजहब धर्म जात की कोई ख़बर,बस खेला करते थे झूमा करते थे।दोस्त चलतें फिरतें ही बन जाते थें।ना ही किसी का धर्म पूछना ना ही जात से कोई दोस्ती का वास्ता होता था।जब वक्त गुजरा बड़े हो गए । दिल में एहसास जज़्बात जगने लगें। सोचा सब कुछ बचपन जैसा होगा ।पर अब तो दुनिया की सोच , दुनिया की रीत, दुनिया के अजब एहसास , खुदगर्ज भरा दिल ,ये सब देखने को मिला उम्र के चलते हुए सफर में। सबको ग़लत कहना सही नहीं है,पर इस ज़माने में मासूमियत की जगह नहीं है, इंसानियत की अदा नहीं है, बेशक बेशर्त वफा का प्यार नहीं है।आज हर कोई जरूरत के वक्त आता है और जरूरत मुकम्मल होते ही 'आप कौन है, आप कौन हैं'।पूरी दुनिया ख़राब नहीं,पर कुछ ख़राब लोगों से दुनिया ख़राब है।
सपने सब देखते हैं, मैं ये बनूंगा मैं वो बनूंगा,पर जब
हम किसी को अपना समझ कर उससे साथ मांगते हैं तो बस वहीं इंसान दुश्मन बन जाता है।
जितना मैंने जाना है जितना समझा है मेंरी नज़र में जो बिना खुदगर्जी के, बिना स्वार्थ के, बिना हमसे कुछ मांगे, बिना ख्वाहिश के हमसे प्यार करता है,तो वो हमारे माता पिता है जो कभी अपने बच्चों के बारे में बुरा नहीं चाहते,ना ही कुछ बदलें में मांगते हैं। माता पिता के अलावा और सब बस अपनी जरूरत देखते हैं और फिर प्यार करते हैं।दावा हर कोई करता है मैं वफा हूं, मेरी कोई शर्त नहीं, मेंरा सच्चा प्यार है,पर अगर आप शांति से खुदके दिल का ख्याल करोंगे तो शायद आपको खुदको मालूम होगा की आप की भी सामने वाले से कुछ जरूरतें है। और मैं सच कह रहा हूं जिस दिन आपकी जरूरत पूरी होना बंद हो जाएगी,आपका मन खुद ब खुद उस इंसान से नफ़रत करने लग जाएगा और फिर आपके वादे आपका दावा सब मिट जाएगा।ये हम सब की सच्चाई हैं जिसे कई लोग मानने से इनकार करेंगे।बचपन जैसा कुछ नहीं बचता बड़े होने पर। दिल का साफ रहना, हमदर्द बनकर हमदर्दी दिखाना,ये सब रहता कहां है। ख्वाबों का मुंतशिर होना, दुनिया की कड़वी बातें सुनना, बेचैनी से गुजरना, मंजिल के लिए लड़ना, पूरी उम्र बस लड़ना झगड़ना रूठना मनाना और फिर किसी खलिश के साथ, पछतावे के साथ गुजर जाना।
जिंदगी में कभी भी दुनिया की बातों में आकर खुद पर शक मत करना, खुदको तकलीफ़ मत देना।आप जैसे है अपने आप में बहुत अच्छे हैं। दुनिया सिर्फ तब बोलतीं है जब वो बराबरी नहीं कर सकती।तो ये दुनिया है इसे बोलने दीजिए कहने दीजिए। और अपनी कामयाबी बढ़ाते रहे, दुनिया की जलन बढ़ाते रहें।
कुछ लोग तो ये भी दावा करते हैं कि हम तो इंसान के दिल से प्यार करते हैं, उसके ज़मीर से प्यार करते हैं, उसकी रूह से प्यार करते है।पर सच्चाई क्या है ये आप भी जानते हैं मैं भी जानता हूं। बहुत कम ऐसे लोग होते हैं जो किसी के जिस्म और शक्ल के हुस्न से पहले उसके दिल की अच्छाई सच्चाई और ख़ूबसूरती देखते हैं।हम सबको मालूम है उम्र के साथ साथ जो चलता है उसे सीरत ज़मीर दिल की खूबसूरती कहते हैं वरना शक्ल ओ जिस्म उम्र के साथ फना होता रहता है और एक दिन मिट्टी में मिल जाता है। प्यार को अगर आज के वक्त में जिस्म का धंधा कह दिया जाए तो शायद पूरे तरीके से ग़लत नहीं होगा। आसपास की दुनिया देखोगे सब मालूम हो जाएगा।
तो बस आख़िर में एक ही बात 'पूरी दुनिया ख़राब नहीं है,बस कुछ लोगों से दुनिया ख़राब है'

पहचान दिल की अच्छाई की
जिस्म का बिन रूह क्या सार है
इंसान को इंसानियत से जानो
सच्चे दिल पे तो ख़ुदा निसार है
-उत्सव कुलदीप

© utsav kuldeep