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मैं और चांद पार्ट:-2
"चांद और अकेलापन"


दिनभर के अपने सब कामों को समाप्त करने के बाद आज फिर मैं छत की तरफ चल दिया, पर आज चेहरे पर उदासी नहीं थी, बल्कि उत्साह था - अपने न‌ए अर्द्धरात्रि मित्र से मिलने के लिए, उत्सुकता थी अपने सवालों के जबाब पाने की।

मैं जाकर छत के उसी कोने में बैठ गया, जहां हमेशा बैठा करता था और चांद की तरफ देखने लगा कि वो मुझको फिर से आवाज लगाएगा। चांद ने भी ज्यादा इंतजार नहीं करवाया और थोड़ी ही देर में मुझे आवाज सुनाई दी - "आ ग‌ए?"

मैंने ऊपर देखा और कहा- "हां, अब बताओ, कल तुमने ऐसा क्यों कहा था, कि तुम अकेलेपन को समझते हो?"

चांद मुस्कुराते हुए बोला -"बड़ी जल्दी है तुम्हें, सीधे वही सवाल जहां कल बात छोड़ी थी।"
मैं चुपचाप चांद को देख रहा था, कुछ नहीं बोला।

चांद थोड़ा रुककर फिर बोला- "मैं बताऊंगा, पर पहले मेरी एक शर्त है।"
मैंने चांद की तरफ असमंजस से देखा और पूछा - " शर्त?, कैसी शर्त?"
चांद बोलने लगा- "मैं तुम्हें अपने बारे में बताऊंगा, पर शर्त यह है कि पहले तुम्हें अपने बारे में मुझे बताना होगा।"
मैं बोला - " मेरे बारे में क्या बताऊं? "

चांद मेरी ओर देखकर बोला - "फिलहाल तो तुम यही बताओ, कि तुम अकेलेपन में इतनी दिलचस्पी क्यों दिखा रहे हो? और तुम खुद को अकेला क्यों समझते हो?"
मैंने थोड़ा सोचा और बोला- "तुम तो सब देखते हो न। फिर मुझसे क्यों सुनना चाहते हो?"

चांद बोला- "बात यह नहीं है कि मैं क्या जानता हूं या नहीं, बात यह है कि क्या तुम मुझसे खुलकर बात कर सकते हो, अगर हां, तो मेरा यहां तुमसे बात करना सही है और अगर तुम मुझ पर विश्वास नहीं कर सकते तो मेरे यहां रुकने का क्या फायदा?"

यह सुनकर ऐसा लगा जैसे कि चांद ने मेरी दुखती रग पर हाथ रखकर उसे दबा दिया हो। मैं बहुत असमंजस में था कि क्या मुझे दिल के उस कोने को फिर से खोलना चाहिए या नहीं। मैं उन यादों में नहीं जाना चाहता था, पर मैं यह भी जानना चाहता था कि आसमान में तारों के बीच में भी चांद अकेला क्यों महसूस करता है? और इसे जानने का एक ही तरीका था, वो था चांद के सामने अपने बारे में बताने का। तब मैंने सोचा कि चलो जिन बातों को किसी से नहीं कर पा रहा, उन्हें चांद से ही कर लेता हूं, शायद मन हल्का हो जाए।

मैंने कहा - "ठीक है, मैं तुम्हें अपने बारे में बताता हूं।"
चांद ने अपनी रोशनी थोड़ी सी तेज कर दी, जैसे वो ध्यान लगाकर मेरी बातें सुनने लगा हो।

मैंने बताना शुरू किया:- "कुछ दिन पहले एक छोटी-सी बात को लेकर मेरे और मेरे एक दोस्त के बीच झगड़ा हो गया था, तबसे हम दोनों के बीच बात बंद है। इसकी वजह से मेरी अन्य दोस्तों के साथ भी बात नहीं हो रही है। मैं हर रोज सुबह उठकर अकेला स्कूल जाता हूं, वैसे ही उदास चेहरा लिए अकेला ही वापस आता हूं। न ही साथ खेलने के लिए कोई है और न ही बात करने के लिए। मैं क्या करूं, कुछ समझ नहीं आ रहा?"

चांद ने पूछा - "झगड़ा इतना बड़ा था क्या? क्या तुम उसे माफ़ नहीं कर सकते?"
मैंने कहा - "नहीं, झगड़ा तो छोटा सा ही था, पर उसके बाद उसने मुझसे बात ही नहीं की ।"

चांद बोला -"और तुमने कोशिश की उससे बात करने की?"
मैंने थोड़ा गुस्से भरे स्वर में बोला -"जब वह मुझसे बात नहीं कर रहा, तो मैं क्यों कोशिश करूं।"

चांद मुझे देखकर हंसने लगा और बोला- "तुम्हें मेरे अकेलेपन के बारे में जानना था न, तो अब सुनो।"

मैं आश्चर्य भरी नजरों से चांद की तरफ देखने लगा, कि यह एक पल पहले तो मेरे बारे में बात कर रहा था तो फिर अचानक से अपने बारे में बताने को उत्सुक क्यों हो गया। मैं कुछ बोलता उससे पहले ही चांद ने मेरी तरफ देखा और पूछा- "जब तुम रात में आसमान की तरफ देखते हो, तो तुम्हें क्या दिखता है?" 

मैंने कहा - "रात में? रात में मुझे दिखता है सितारों से भरा यह सुंदर आसमान, जिसमें लाखों सितारों के बीच में तुम ऐसे लगते हो, जैसे पूरी महफ़िल की शान तुमसे है।"
चांद ने पूछा - "और?"
मैंने आगे कहा - "और मुझे दिखती है तुम्हारी और तारों की दोस्ती। कैसे यह तारे, तुम्हारे साथ में उगते हैं, रात भर तुम्हारे साथ रहते हैं और सुबह तुम्हारे साथ ही चले जाते हैं।"

चांद थोड़ा मुस्कुराया और बोला - "अच्छा, पर क्या तुम्हें पता है, यह तारे मेरे पास नहीं हैं?"

मैं अचंभित सा चांद की ओर देखा और पूछा - "क्या मतलब?"
चांद आगे बोला- " विस्तार से बताता हूं, सुनो, जिन सितारों की तुम बात कर रहे हो न, वो तो मुझसे हजारों-लाखों मील दूर स्थित हैं, वो तो मेरे आस-पास ही नहीं हैं।"
मैं अचंभित सा चांद की ओर देखता रहा।

चांद ने आगे कहना जारी रखा- " जानते हो मेरे सबसे पास जो तारा है, वह सूर्य है, पर वह भी मुझसे लगभग 93 मिलियन मील (146,692,378 किलोमीटर) दूर स्थित है और जो सबसे निकटतम ग्रह है, वो पृथ्वी है, जो मुझसे 238,855 मील (384,000 किलोमीटर ) दूर है और मेरे आस-पास है बस घोर अंधकार और अकेलापन। दूर-दूर तक कोई नहीं है, जिससे मैं बातें कर सकूं, मैं अकेला अपनी कक्षा में रहते हुए पृथ्वी के चारों ओर घूमता रहता हूं और यहीं पर अगर कोई मिल जाता है, तुम्हारी तरह तो उससे बात कर लेता हूं।"


मैं चांद की बात सुनकर हैरान था, मैं एकटक चांद को देखे जा रहा था, कि चांद फिर से बोल पड़ा- "एक बात और, पृथ्वी भी धीरे-धीरे मुझसे दूर होती जा रही है, यानी मैं और अकेला होता जा रहा हूं।"

मैंने नम आंखों से चांद से पूछा - "तुम्हें कभी बुरा नहीं लगता, यूं अकेले रहते हुए?,कभी मन नहीं होता किसी से बात करने का?"
चांद थोड़ा मुस्कुरा कर बोला - "लगता है, पर हर रात जब लोग मुझे अपने दोस्त की तरह, अपनी दुःख भरी दास्तां सुनाते हैं, तो मन मेरे मन को सुकून मिलता है कि, मैं किसी का दुःख बांटने का साधन तो हूं, मुझसे अपने दुःख बांटकर किसी का दिल तो शांत हो जाता है।"

मैंने चांद से फिर पूछा - "और तुम अपनी दास्तां नहीं सुनाते?"
चांद थोड़ा हंसा और बोला - "कोशिश करता हूं, पर अक्सर लोग मेरी आवाज़ सुनकर डर जाते हैं और रात में छतों पर आना ही बंद कर देते हैं, जैसे पहले तुम घबराए थे, और कुछ लोग जो घबराते नहीं है, वो मेरी आवाज़ को अपना भ्रम मानकर भूल जाते हैं।"

मेरे पास अब शब्द नहीं थे, मैं बस चांद की तरफ देखने लगा। तभी अचानक चांद की आवाज में एक बदलाव सा आया और उसने मुझसे पूछा - "अच्छा, तो अब बताओ क्या तुम सच में अकेले हो?"

मैंने नहीं में सर हिलाया और बोला - "बिल्कुल नहीं।"

मैं और चांद कुछ देर तक यूं ही एक-दूसरे को देखते रहे। तब चांद ने आगे कहा - "देखो, बातों ही बातों में हमारा समय हो गया, उम्मीद करता हूं कि आज तुमको कुछ काम की बात पता चली होगी, अब जाओ, आराम करो, सुबह फिर उठना भी तो है।"

मैंने चांद को "बाय" किया और नीचे आने लगा, पर अब मेरे मन में विचार आ गया था, कि क्या सच में, मैं अकेला हूं? या यह सिर्फ मेरा वहम और ईगो है, जो मुझे अपने दोस्तों से दूर कर रहा है। यही सोचता हुआ मैं सो गया।

अगली सुबह मैं चेहरे पर मुस्कुराहट के साथ उठा और तैयार होकर स्कूल आ गया। वहां जब अपने दोस्त को देखा तो पहले तो थोड़ा घबड़ाया पर फिर हिम्मत करके उसके पास गया और बोला - "मुझे माफ़ करना भाई..." 
मैं इसके आगे कुछ बोलता, उससे पहले ही दोस्त ने मुझे गले लगाया और बोलने लगा- " भाई तुम मुझे माफ़ करदो, मुझे दो दिन पहले ही पता चला कि उस दिन गलती मेरी ही थी, पर तुमसे माफ़ी मांगने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था।"
मैंने कहा- "भाई, गलती तो मेरी भी थी, तुम्हें समझाने की जगह मैं तुमसे नाराज़ होकर बैठ गया और फिर बात करने की कोशिश भी नहीं की।"
इसके बाद हम दोनों ने एक दूसरे को और कसकर गले लगा लिया और उस दिन के बाद हम दोनों के बीच सब कुछ सामान्य हो गया।

उस दिन मुझे एक बात समझ में आ गई, कि दुनिया में हम अकेले तो कभी होते ही नहीं है, कोई न कोई हमेशा हमारे आस-पास रहता है, बस बात इतनी होती है कि हम उस व्यक्ति से खुलकर अपने दिल की बात नहीं कर पाते और जिस व्यक्ति से हम बात करना चाहते हैं, वो हमारे पास नहीं होता तो उस व्यक्ति की कमी, हमें अकेला महसूस कराती है।


Note:- यह चित्र आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस द्वारा निर्मित है।

पार्ट-3:- चांद और सुंदरता।




© Aniket Sahu