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"हर बात पे तुम
अपने शौक का ज़िक्र
करती थी...
हर बात पे तुम
अपने शौक का ज़िक्र
करती थी...
आज हुआ मालूम कि,
तुम सिर्फ अपनी
फिक्र करती थी..."
इस बार मैं पलट के भी नही देखूँगा...
बस... नहीं देखना है मुझे...
मुझे पता है रुक के देख रही हो तुम... पर अब मैं रुकूँगा नहीं...
मुझे दुःख है तुम्हारे जाने का...
पर... कष्ट नहीं है...
प्रेम में शर्तें नहीं होती... होता है तो सिर्फ प्रेम से जुड़ा हर लम्हा...
चाहे वो संगीत में,
रोशीनी में,
कपड़ो में,
खाने में,
प्रकर्ति को निहारने में,
बहते पानी में,
चलती हवा में,
चाँद की चाँदनी में,
सूर्य की तपिश में,
फलों की मिठास में,
ईर्ष्या में,
रफ्तार में,
ठहराव में
यहाँ तक की एक नफ़रत भरे दिल में भी प्रेम है...
मानो कल की बात हो जैसे...
तुम स्कूल के बरामदे में खड़ी थी और मैंने पहली बार देखा तुम्हें...
मैं मैदान में,
धूप में,
पसीने से लथपथ...
बायीं कलाई में रुमाल बाँधे...
आस्तीनों को ऊपर चढ़ाये,
एकदम बिंदास सा रहने वाला अचानक से रुक गया...
वो दूध सी सफेद,
बड़ी बड़ी आँखें,
स्कर्ट पहन के,
हाथों में रुमाल दबोचे,
इधर उधर कुछ ढूंढती सी,
एक अन्जान मासूमियत लिए मेरी नज़रो से टकरा गई...
मैं मुस्कुरा दिया... क्योंकि... ये क्योंकि का जवाब नहीं है मेरे पास...
उसने नज़रे फेर तो ली पर यूँ आवारा सा दिखने वाला मैं पहला इंसान था जिसने उसकी आँखों में झाँकने की हिम्मत की हो शायद...
अब हर क्लास में टीचर बाहर निकाल दे, बस यही चाहिए था...
मेरी क्लास से उसकी क्लास जो दिखती है...
और मेरी सज़ा की जगह से वो एक दम साफ...
वक़्त एक ऐसा जानवर है जो आपका पालतू है...
वफादार है कि नहीं... ये खुदा जाने...
पर वक़्त वफादार हो न हो...
वक़्त अपने हिसाब में मजबूत है...
उसको पता ये होता है कि कब हमें क्या देना है...
हर बार लड़ के मैंने वक़्त से अपने अरमान सजाये...
पर हैसियत हमेशा आड़े आ गयी...
अब उम्र बढ़ने का भी एक तरीका है साहब... बिना दिन काटे तो यहाँ हफ्ता न गुज़रता... और अरमान हमारे सालों आगे के हैं...
उससे शादी नहीं हुई...
मैंने उसको याद किया...
रोज़ याद किया...
अभी भी करता हूँ...
क्षमा नहीं है मेरे दिल के किसी भी कमरे में...
शराब बड़ी बेरहम चीज़ बनायी है बनाने वाले ने...
रोज़ शाम साथ देगी, अकेले नहीं छोड़ेगी...
सुबह काम करते वक़्त बिल्कुल नहीं परेशान करेगी...
दो ज़िंदगियों को एक साथ जी लेने का हुनर है...
एक सुबह से शाम तक...
एक शाम से सुबह तक...
शादी कर ली मैंने अब...
पर उसकी याद वहीं है...
ऐसा नहीं की मैं वफादार नहीं अपनी बीवी को...
पर याद उसकी अपने कमरे में ठहरती नहीं थी...
फिर एक दिन एक और लड़की आयी मेरी ज़िंदगी में...
अब,
"हर शौक़ का ज़िक्र जब वो करती थी...
हर शौक़ का ज़िक्र जब वो करती थी...
मानो मुझे उसकी फिक्र सी लगती थी..."
प्रेम में शर्तें नहीं होती...
पर मुझे उसकी शर्तों से प्रेम था...
उसके संगीत से,
उसकी रोशीनी से,
उसके कपड़ो से,
उसके खाने से,
उसके प्रकर्ति को निहारने से,
उसके इर्द गिर्द चलती हवा से,
उसपर चाँद से पड़ने वाली चाँदनी से,
उसपर पड़ने वाली सूर्य की तपिश से,
उसके चखे हुए फलों की मिठास से,
उसके हर जीवन के हर लम्हे से मुझे प्रेम हो गया...
आज मेरी पहली प्रेम कहानी पर मेरी दूसरी प्रेम कहानी भारी पड़ गयी...
बचपन का प्रेम और जवानी की नफरत धुल गयी...
मेरी बेटी आ गयी...
मेरे जीवन को एक बार और जीवित करने...
मेरे हृदय के वो कमरे जिन पर ताला मैं खुद लटका के आया था... उसने बिना चाबी के उसको खोल दिया...
वक़्त वफादार भी होता है... वो अपना एंजेल भेज देता है आपके पास...
© सारांश
अपने शौक का ज़िक्र
करती थी...
हर बात पे तुम
अपने शौक का ज़िक्र
करती थी...
आज हुआ मालूम कि,
तुम सिर्फ अपनी
फिक्र करती थी..."
इस बार मैं पलट के भी नही देखूँगा...
बस... नहीं देखना है मुझे...
मुझे पता है रुक के देख रही हो तुम... पर अब मैं रुकूँगा नहीं...
मुझे दुःख है तुम्हारे जाने का...
पर... कष्ट नहीं है...
प्रेम में शर्तें नहीं होती... होता है तो सिर्फ प्रेम से जुड़ा हर लम्हा...
चाहे वो संगीत में,
रोशीनी में,
कपड़ो में,
खाने में,
प्रकर्ति को निहारने में,
बहते पानी में,
चलती हवा में,
चाँद की चाँदनी में,
सूर्य की तपिश में,
फलों की मिठास में,
ईर्ष्या में,
रफ्तार में,
ठहराव में
यहाँ तक की एक नफ़रत भरे दिल में भी प्रेम है...
मानो कल की बात हो जैसे...
तुम स्कूल के बरामदे में खड़ी थी और मैंने पहली बार देखा तुम्हें...
मैं मैदान में,
धूप में,
पसीने से लथपथ...
बायीं कलाई में रुमाल बाँधे...
आस्तीनों को ऊपर चढ़ाये,
एकदम बिंदास सा रहने वाला अचानक से रुक गया...
वो दूध सी सफेद,
बड़ी बड़ी आँखें,
स्कर्ट पहन के,
हाथों में रुमाल दबोचे,
इधर उधर कुछ ढूंढती सी,
एक अन्जान मासूमियत लिए मेरी नज़रो से टकरा गई...
मैं मुस्कुरा दिया... क्योंकि... ये क्योंकि का जवाब नहीं है मेरे पास...
उसने नज़रे फेर तो ली पर यूँ आवारा सा दिखने वाला मैं पहला इंसान था जिसने उसकी आँखों में झाँकने की हिम्मत की हो शायद...
अब हर क्लास में टीचर बाहर निकाल दे, बस यही चाहिए था...
मेरी क्लास से उसकी क्लास जो दिखती है...
और मेरी सज़ा की जगह से वो एक दम साफ...
वक़्त एक ऐसा जानवर है जो आपका पालतू है...
वफादार है कि नहीं... ये खुदा जाने...
पर वक़्त वफादार हो न हो...
वक़्त अपने हिसाब में मजबूत है...
उसको पता ये होता है कि कब हमें क्या देना है...
हर बार लड़ के मैंने वक़्त से अपने अरमान सजाये...
पर हैसियत हमेशा आड़े आ गयी...
अब उम्र बढ़ने का भी एक तरीका है साहब... बिना दिन काटे तो यहाँ हफ्ता न गुज़रता... और अरमान हमारे सालों आगे के हैं...
उससे शादी नहीं हुई...
मैंने उसको याद किया...
रोज़ याद किया...
अभी भी करता हूँ...
क्षमा नहीं है मेरे दिल के किसी भी कमरे में...
शराब बड़ी बेरहम चीज़ बनायी है बनाने वाले ने...
रोज़ शाम साथ देगी, अकेले नहीं छोड़ेगी...
सुबह काम करते वक़्त बिल्कुल नहीं परेशान करेगी...
दो ज़िंदगियों को एक साथ जी लेने का हुनर है...
एक सुबह से शाम तक...
एक शाम से सुबह तक...
शादी कर ली मैंने अब...
पर उसकी याद वहीं है...
ऐसा नहीं की मैं वफादार नहीं अपनी बीवी को...
पर याद उसकी अपने कमरे में ठहरती नहीं थी...
फिर एक दिन एक और लड़की आयी मेरी ज़िंदगी में...
अब,
"हर शौक़ का ज़िक्र जब वो करती थी...
हर शौक़ का ज़िक्र जब वो करती थी...
मानो मुझे उसकी फिक्र सी लगती थी..."
प्रेम में शर्तें नहीं होती...
पर मुझे उसकी शर्तों से प्रेम था...
उसके संगीत से,
उसकी रोशीनी से,
उसके कपड़ो से,
उसके खाने से,
उसके प्रकर्ति को निहारने से,
उसके इर्द गिर्द चलती हवा से,
उसपर चाँद से पड़ने वाली चाँदनी से,
उसपर पड़ने वाली सूर्य की तपिश से,
उसके चखे हुए फलों की मिठास से,
उसके हर जीवन के हर लम्हे से मुझे प्रेम हो गया...
आज मेरी पहली प्रेम कहानी पर मेरी दूसरी प्रेम कहानी भारी पड़ गयी...
बचपन का प्रेम और जवानी की नफरत धुल गयी...
मेरी बेटी आ गयी...
मेरे जीवन को एक बार और जीवित करने...
मेरे हृदय के वो कमरे जिन पर ताला मैं खुद लटका के आया था... उसने बिना चाबी के उसको खोल दिया...
वक़्त वफादार भी होता है... वो अपना एंजेल भेज देता है आपके पास...
© सारांश