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मायका।।
घर की दहलीज़ पर पहुँचते ही मेरे कदम ठिठक गए । हृदय और मन में उदासी छाई हुई थी ।मन-मस्तिष्क में बाऊ जी छाय हुए थे । उनके जाने के बाद पहली बार छुट्टियों में मायके रहने आयी थी ।अजीब सी खामोशी थी आज दहलीज़ में ।जैसे ही दहलीज़ पर दस्तक दी तो बाऊ जी की कड़कड़ाती आवाज़ कानों में गूंजने लगी “ सरला …दहलीज़ का संकल खोल दो…अंजलि आ गयी “ । न जाने कैसे मेरी दस्तक से ही उन्हें मेरे आगमन का आभास हो जाता था ।कुदरत ने कुछ अजीब सा रिश्ता बनाया है माता-पिता और संतान के बीच ।संतान के हृदय की तार सीधी माता -पिता के हृदय से जुड़ी होती है ।उनके कदमों की आहट , उनकी ख़ुशबू , उनके चेहरा की भाषा , उनकी सुख -दुःख का आभास …सब सरलता से जान लेतेहैं माता -पिता ।यहाँ तक कि शब्दों की भाषा से ज़्यादा प्रबल और रहस्यमयी होती है आँखों की मूक भाषा ..जिसे बड़ीकुशलता से पढ़ लेते हैं माता -पिता ।तभी तो सृष्टि में माता -पिता को ईश्वर के समान स्थान प्राप्त हुआ है ..ममतामयऔर पूजनीय ।माँ दहलीज़ खोलते ही “ लाडो “ कह कर गले लगा लेती और बाऊ जी “ अंजलि आ गयी ..अंजलि आ गयी“ कह कह कर ,घर में सबको आवाज़ लगा लगा कर पूरा घर सिर पर उठा लेते थे ।अपने स्नेह भरे अतीत में खोई थी मैं कीतभी दहलीज़ खुलने की आवाज़ आयी ,

सामने रामू काका खड़े थे ।

रामू काका हमारे परिवार के सदस्य के समान

थे । घर के सभी काम अत्यंत निपुणता से करते

थे ।परिवार को एक सूत्र में बाँधने की ज़िम्मेदारी बखूबी निभा रहे थे वे , वरना आज कल के जमाने में संयुक्त परिवारलुप्त से हो गए हैं ।ये तो रामू काका है जो अभी तक ये परिवार अभी तक संयुक्त है अन्यथा …..।बाऊ जी के जमाने से थेइसलिए सभी परिवार वाले सम्पूर्ण मान देते थे उन्हें ।

“ आओ बिटिया ..लाओ सामान मुझे दे दो “कह कर रामू काका मेरे हाथ से सामान ले लिया ।घर में कदम रखते ही बहुतकुछ पराया जैसा एहसास हुआ ।बाऊ जी के सामने जो घर -आँगन जो घर वालों से ,उनकी चुहलबाज़ियों से और उनकीहँसी -ठिठोलियों से भरा रहता था ..वो अब सन्नाटा ओढ़े खड़ा था ।अगर बाऊ जी होते तो इस

सन्नाटे के स्थान पर शोर -शराबा होता ।

माँ अपने कमरे में थी ।बाऊ जी के जाने के बाद ही माँ को जैसे उम्र ने जकड़ लिया था ।घर में फिरकनी की तरह घूमतीमेरी माँ अब गठिया -बाव के दर्द के साथ -साथ न जाने कितनी बीमारियों का शिकार हो चुकी थी । उनका कंचन सादमकता अब निष्प्राण जैसा प्रतीत हो रहा...