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सिनेमा घर



एक सिनेमा घर नदी के दूसरे किनारे पर छोटी पहाड़ी पर बना हुआ था! कहते है इसे उस क्षेत्र के राजा ने बनवाया था, वह उनका निजी सिनेमा घर था! सिनेमा घर जाने के लिए नदी पर बना पुल पार करना पड़ता था! सिनेमा घर का इलाका सुनसान था वहां बस एक दो ढाबे थे, कुछ डेढ़ किलोमीटर दूर एक बस्ती थी और सिनेमा घर के बाए ओर एक छोटा-सा विश्राम गृह था! इस विश्राम गृह में राजा अपने मेहमानों के साथ ठहरता था! पर अब न राजा रहा न ही उसका राज्य, विश्राम गृह भी सुनसान पडा था! अधिक तर जोडे शहर की भाग दौड़ से दूर इस सिनेमा घर में फिल्म देखने आते और रात का खाना ढाबे पर खा कर जाते! वहां ढाबे राजा के समय से थे, कई पीढ़ियों ने ढाबे को सँवारा था! ढाबे का मालिक और वहां काम करने वालों कई पीढ़ियों ने ढाबे पर काम किया इसलिए उन लोगों के पास राजा के अनेक किस्से-कहानियों थी जो उन्होंने अपने दादा पर-दादा से सुनी थी! वे ये कहानियां अपने ग्राहकों को सुनाते, इसमें राजा के आखेट की, राजा के मेहमानों की और सुन्दर भीलनी की कहानी अक्सर सुनाई जाती! राजा को भीलनी से प्यार हो गया था और वह भीलनी के साथ विश्राम गृह में रहने लगा, सिनेमा और आखेट उनके मनोरंजन के साधन थे! राजा था तो उसके साथ सैनिको की टुकड़ी होना लाजिमी था, सब का खाना ढाबे पर ही बनाता था! रात को राजा और भीलनी नौका विहार को निकलते, वे रात बाहर बजे के बाद ढाबे पर खाना खाने आते! तब तक सब सैनिक खाना खा कर विश्राम करने चले जाते थे! इसी सैनिक टुकड़ी के वंशज अब बस्ती में रहते हैं, यह सैनिक टुकडी राजा ने भिलनी की सुरक्षा और सेवा के लिए तैनात की थी! ढाब का मालिक राजा और भीलनी को स्वयं उनका मनपसंद भोजन सोने की थाली में परोसता! कुछ दिन वहां रहने के बाद राजा अपने राजमहल लौट जाता और भीलनी किसी गुप्त स्थान पर चली जाती कहाँ ये किसी को नहीं पता था! पर रानी को भीलनी के बारे में पता चल गया और उसने षड्यंत्र रच भीलनी को मरवा दिया! राजा फिर यहाँ कभी नहीं आया और उसने यह सिनेमा घर आम जनता के लिए खोल दिया! पर कहते है कि आज भी रोज़ रात बारह बजे भीलनी की आत्मा ढाबे पर खाना खाने आती है ढाबे का मालिक सोने की थाली में भीलनी के पसंद का भोजन रखता है! सुबह जब वह थाली उठाने आता है तो उसमें भोजन नहीं होता ऐसा प्रतीत होता है कि किसी ने भोजन खा लिया! ढाबे के मालिक का मानना है कि भीलनी की आत्मा राजा से मिलने की अास में रोज ढाबे पर खाना खाने आती है और उसी की कृपा से ढाबे की आमदनी अच्छी होती है! इसलिए इस सिनेमा घर में आखिरी शो रात ग्यारह बजे खत्म हो जाता है! जब सिनेमा घर आम जनता के लिए खोला गया उस से पहले नदी पर पुल भी बना दिया गया! एक बार इस सिनेमा घर में हॉरर फिल्म लगाई गई यानी भूतिया फिल्म! फिल्म लम्बी थी इसलिए रात साढ़े ग्यारह बजे तक चली, फिल्म बहुत डरावनी थी साथ ही लोगों में भीलनी का खौफ भी गहरा रहा था क्योंकि बारह बजने में कुछ ही समय शेष था! सब जल्द से जल्द नदी का पुल पार कर लेना चाहते थे, तभी किसी को शरारत सुझी और उसने रिकार्ड प्लेयर पर हॉरर फिल्म की धुन बजा दी! फिल्म में इसी धुन पर भूतनी अपने महल से निकलती और फिर फिल्म देखने वाले दहशत से भर उठते थे!
फिल्म देख कर लौटने वाली भीड़ में एक नवविवाहित जोड़ा भी था जो कुछ एकांत पाने की ख्वाहिश मे इस सिनेमा घर में फिल्म देखने आया था! जब ये जोडा सिनेमा घर जा रहा था उस समय सांय के सात बज रहे थे! सर्दियों का मौसम था इसलिए अंधेरा जल्दी हो जाता था, आज चाँद कुछ अधिक ही चमकता प्रतीत हो रहा था! चाँदनी अपनी आभा चारों ओर बिखेर रही थी, नदी के लहरों के साथ अठखेलियाँ करते हुए वातावरण को खुशनुमा बना रही थी! जोड़ा पुल पर खड़े होकर नदी पर बिखरी चाँदनी की आभा को निहारने लगा! हौले हौले पवन बह रही थी, प्रकृति बहुत ही मनमोहक लग रही थी! अभी फिल्म शुरू होने में एक घंटा शेष था, पुल पर लोगों की आवाजाही निरंतर हो रही थी पर ये जोड़ा अपने में ही मशगूल था! जब फिल्म शुरू होने में थोड़ा समय शेष था तब ये दोनों सिनेमा घर की ओर चल पडे! फिल्म अचानक चलते चलते बीच में रुक गई, हॉल में होहल्ला मच गया पता चला प्रोजेक्टर मे कुछ खराबी आई है! प्रोजेक्टर ठीक होने में १५-२० मिनट लग गए! फिल्म समाप्त हुई तो सोचा ढाबे पर खाना खा ले, पर फिल्म लेट खत्म होने के कारण ढाबे के मालिक ने ढाबा बंद कर दिया और वो भीलनी के लिए भोजन तैयार कर रहा था! ये जोड़ा इन सब बातों में विश्वास नहीं करता था, पर ढाबे के मालिक के मना करने पर उन्हें वहाँ से जाना ही पडा! वे थोड़ा ही चले होगें कि अचानक हवा का वेग तेज हो गया, ऐसा लगा मानो पारा एक्दम से चार पांच डिग्री नीचे खिसक गया हो! बाहर बजने में पाँच मिनट ही बाकी थे, दहशत का माहौल था, उस पर किसी ने वो धुन बजा दी, प्रकृति का रूप भी बदल रहा था! हवा भी दरख्तों से टकराते हुए विचित्र सी अवाजे कर रही थी, तभी किसी के चीखने की आवाज़ आई और भगदड़ मच गई, सब जल्द से जल्द पुल पार कर लेना चाहते थे! किसी का स्वर सुनाई दिया कि भीलनी ढाबे पर है! जब इस जोड़े को होश आया तो इन्होंने अपने आप को अस्पताल में पाया, पत्नी जिसका नाम रचना था, उस के पेट मे विचित्र खंजर का घाव था जिसे देख डॉक्टर भी अचम्भित थे! घाव में से रक्त स्राव न के बराबर था घाव पूराना दिख रहा था, पर रचना को अत्याधिक पीड़ा हो रही थी! रचना के पति मोहन को कोई चोट नहीं लगी थी पर उसे भी अचेत अवस्था में ही अस्पताल लाया गया! जब पुलिस ने मोहन से पूछ ताछ की तब उसने बताया कि भीलनी के ढाबे पर होने की बात सुन उसने ढाबे की ओर मुड कर देखा, उसे लगा किसी बेहद ठंडी काली चीज ने उसे छुआ और वो अचेत हो गया! पुलिस को शक था कि मोहन ने ही अपनी पत्नी को मारने की साजिश की है और भोला बनने का नाटक कर रहा है! पुल पर हुई भगदड़ में कई लोग घायल भी हुए और कई लोग अचेत भी हो गए! इस घटना के बाद एक बड़ी विचित्र बात हुई ढाबे के मालिक के मुताबिक अब भीलनी खाना खाने नहीं आती शायद उसकी तलाश खत्म हो गई! लोग तरह तरह की बातें करने लगे कोई कहता मोहन और रचना ही शायद पूर्व जन्म में राजा और रानी थे और भीलनी ने मोहन में राजा की आत्मा को पहचान लिया! पर पुलिस ये सब कहाँ मानने वाली थी उसकी शक की सूई तो मोहन पर ही अटकी थी! पर सबूत न मिलने पर और मोहन के खिलाफ कोई शिकायत न दर्ज होने पर केस रफा-दफा हो गया! पर वो सिनेमा घर आज भी चर्चा का विषय बना हुआ है!
रुचि प जैन
स्वरचित रचना