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हमारे हालात और क़िस्मत का ज़िम्मेवार कौन?
इन्सान के हालात क्या से क्या हो जाते हैं, कभी अच्छे से बुरे और कभी बुरे से अच्छे। इन हालातों के लिए आख़िर कौन ज़िम्मेवार है?

कभी सोचा है, कि जब अच्छा होता है तो उसका श्रेय ख़ुद लेते हैं, मगर जब कुछ बुरा होता है तो हम किसी और को उसका कारण बना देते हैं, और ऐसा हम सब कभी ना कभी करते है, मगर क्यों?

जब हम सबको ये पता है, कि आप अगर एक ग़रीब घर में पैदा हुए हैं, तो ये आपका दुर्भाग्य हो सकता है, मगर अगर आप ग़रीब ही मर गये तो, ये आपके ख़ुद की कमी है, ना की आपके भाग्य की। आप जैसी भी स्थिति में हैं, उसके कारण और उसके कारक दोनों आप ही हैं, और कोई नहीं, इसलिए किसी और को आपकी स्थिति के लिए ज़िम्मेदार ना बनायें। समझौता कर लेते हैं, हम सभी कि अगर कुछ बुरा हुआ है आपके साथ, तो यह बोलते हैं कि यही क़िस्मत में लिखा है । कभी कभी ऐसा भी होता है कि, आप सबके लिए अच्छे हैं, किसी के लिए ना तो बुरा सोचते हैं, ना ही बुरा करते हैं, यह सब हम अपने कर्मों के खाते में जमा कर रहे हैं, ऐसे ही अगर आप बुरा सोचते और करते हैं, वह भी जमा हो रहा है, हमारे खाते में। इन कर्मों के खाते का भी एक ना एक दिन तो हिसाब होगा ही, और उसी आधार पर पुनर्जन्म मिलेगा, इसमें कुछ सत्यता तो है ज़रूर, और यह एक चर्चा का विषय भी है।

मगर एक बात तो स्पष्ट है कि, जो लोग हमेशा अच्छा सोचते हैं और ख़ुद के लिए भी और दूसरों के लिए भी अच्छा करते हैं, और जिनमें कोई द्वेष की भावना नहीं होती है, ऐसे लोगों को बाक़ी सब पसंद करते हैं, और अक्सर ऐसे लोग सबके बीच एक आकर्षण का केंद्र भी बने रहते हैं, जैसे कि इनमें कोई चुंबकीय शक्ति है। इसलिए ये ज़रूरी है की कर्म प्रधान बने, नाकि क़िस्मत को रोयें या फिर अपने हालात की वजह किसी और को ठहरायें, और यह आपके, हमारे ही ऊपर है..

© सुneel