बसंत पंचमी
बसंत पंचमी का नाम सुनते ही वो दिन बरबस ही आँखों के सामने तैरने लगते हैं । टीन के डब्बे में बंद चंद सिक्कों की खन - खन की आवाज़ के साथ चंदा काटने का वो सुकून भरा पल आँखों को नम कर देता है । अद्भुत राग हुआ करता था उस शोर का । दिन भर का वो दौर और शाम को पैसे गिनने का कौतूहल! वो पल कोई कैसे भूल सकता है ? चंदे में दूधवाले से दूध, फल वाले से फल और जो भी मिल जाता था वसूले जाते थे । वो तड़के की सुबह - सवेरे शहीद चौक पर गाय -भैंस के काफ़िले को रोककर चंदे की बकझक और फ़िर चंदा वसूल लेने के विजयभाव का वो गर्व अब भी गर्वित करता है । बांस लगाकर , रास्तों को रोककर सायकल वाले , रिक्शे वाले , स्कूटर वाले से चंदा काटना अपने आप में एक त्यौहार सा था । अबकी बार कौन सा क्लब कौन सा पंडाल सजायेगा , मूर्ति कहाँ से आएगी इसका पता लगाना एक अद्भुत अनुभव सा था । रायगंज से मूर्ति लाने का...