आख़िरी मुलाक़ात..
....... एक लम्बी सांसे भरते हुए जब मैंने पहला शब्द बोला वो ये की कैसे हो? उम्मीद यही थी की काश एक बार वो भी पूछ ले की मैं कैसी हू!
तो मै पहले महि पे बैठ के उनका हाथ कस के पकडू और उनकी आँखो मे झाँक के उनके मन को पढ़ूँ.... बताऊँ की कितनी तपिस है मन मे मेरे.. बोलू कि मै हर रोज बितते वक़्त के साथ मर रही हू। जब बोलू की जो कुछ भी हो रहा सब रोक दो तो मन मे एक पक्की उम्मीद हो की वो सब ठीक कर देगा। वो भी कभी ना छोड़ने की लय मे बिल्कुल उसी जकडन के साथ मेरा हाथ पकड़ा हो! जैसे वो बिना कहे ही चीख चीख के मुझसे कह रहा हो की अगले पल में वो सब ठीक कर देगा।
फिर अचानक एक अजीब आवाज के साथ मेरी नींद खुल गयी और ये ख्वाब अधूरा रह गया।
आख़िरी मुलाक़ात के लिए मुलाक़ात हुई ही नहीं....
© Ankita siingh
तो मै पहले महि पे बैठ के उनका हाथ कस के पकडू और उनकी आँखो मे झाँक के उनके मन को पढ़ूँ.... बताऊँ की कितनी तपिस है मन मे मेरे.. बोलू कि मै हर रोज बितते वक़्त के साथ मर रही हू। जब बोलू की जो कुछ भी हो रहा सब रोक दो तो मन मे एक पक्की उम्मीद हो की वो सब ठीक कर देगा। वो भी कभी ना छोड़ने की लय मे बिल्कुल उसी जकडन के साथ मेरा हाथ पकड़ा हो! जैसे वो बिना कहे ही चीख चीख के मुझसे कह रहा हो की अगले पल में वो सब ठीक कर देगा।
फिर अचानक एक अजीब आवाज के साथ मेरी नींद खुल गयी और ये ख्वाब अधूरा रह गया।
आख़िरी मुलाक़ात के लिए मुलाक़ात हुई ही नहीं....
© Ankita siingh