...

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सब गैर हो चुके है क्या?
समझ नहीं आता किसके कंधे पर सिर रखकर अपने दुखों को बताया जाए
बाहर वालों से कैसा शिकवा जब घर के लोग पराया कर दिए जाए
और ना जाने क्या क्या देखना बाकी है, उसूलों के चलते हर किसी का मोहताज बनना बाकी है....

हमे हमारे हाल पर छोड़ दो यारा
बताकर पर भी क्या फायदा ,
जिंदगी ने हर बारीकी से उलझा कर है मारा
बस अर्जी इतनी है कि या तो मेरे महादेव का बुलावा आजाये , आजादी का पैगंबर समझकर जान चली जाये
या तो देदे एक शक्स जो सिर्फ मेरा होकर,
मेरे दुखों को समेट ले जाये •••

बचपन से बुहत शौक रखती थीं दूसरो को खुश देखने के लिए हर मनचाही ख़ाहिश पूरा करती थी
जब बात मुझपर आती थीं तो हर कोई अजनबी सा बन जाता था.....
मैं मुट्ठी बांधना सीखा करती थी और मेरे अपने हमेशा मेरी मुट्ठी खोलकर गैर बन जाता था •••

हाँ खामोश रहा करती थी मैं लेकिन दिल में हमेशा शोर मचा रहता था, बाहर की आवाजें सुनाई नहीं दिया करती थी...
लोग पागल समझते और मैं गम्भीर होकर मन में रोया करती थी ••••

अकेले होकर रोज एक ही सवाल किया करती थी और उसका जवाब आजतक छुपा हुआ है...
क्या इतनी बुरी थी मैं की माँ बाप की भी अपनी ना बन सकीं मैं
दूसरो को क्या भाती, अपनों से ही हर बार गैर बन जाया करती मैं ●●●



© Angelite** :)