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गुस्ताख़ दिल (part 5)
स्कूल का माहौल अब सुकून और मस्ती भरा हो गया था। देखते ही देखते हमारे 1st सेमेस्टर की परीक्षा भी हो चुकी थी। उम्मीद अनुसार मैं पास हो गई थी और शिल्पी प्रथम आई थी और प्रशांत द्वितीय स्थान पर। हम सभी में अब तक बहुत अच्छी मित्रता हो चुकी थी इतनी कि एक दूसरे के घर में हमारा आना जाना शुरू हो गया था। वहीं गली में भी खिंची हुई वो लकीर हमने मिटवा दी थी यानी गली में भी सब एक होकर खेला करते थे। कल ही हम अपने मामा के यहांँ से लौटे थे और मांँ अभी तक हम सब से नाराज़ थी। ये नाराज़गी मामा के यहांँ से जल्दी आने की नहीं थी।। दरअसल हुआ यूंँ था कि कुछ दिन पहले मामा की बेटी की शादी में लड्डू से सबके सामने पूछा गया कि 11वी में कौनसा विषय लेगा। उसे वहांँ से जाने की जल्दी थी इसलिए बिना सोचे उसने आर्ट्स कह दिया जब कि मांँ सबको कह चुकी थी कि लड्डू को साइंस ही दिलवाएंगी। बस फिर होना क्या था मांँ गुस्सा हो गई। "अरे, ठीक है न। यूंँ ही कह दिया उसने। अब इतना गुस्सा ठीक नहीं। आख़िर पढ़ना तो उसने ही है न तो उसे ही तय करने दो कि क्या लेगा आगे।" बाबा और मामा ने बहुत समझाया था मांँ को। पर मांँ मानने को ही तैयार नहीं थी। "कुछ दिनों में ख़ुद ही सही हो जाएगी।" बाबा ने कहा तो हमने भी फिर कुछ नहीं कहा मांँ से।
फाइनल टर्म्स के पेपर के बाद लड्डू ने आख़िर आर्ट्स ही चुनी।
"यार मम्मी, मुझसे नहीं पढ़ी जाएगी साइंस।" उसने बस इतना ही कहा था। आख़िरकार मांँ ने ख़ुद को ही समझा दिया।
शिल्पी और मैं अब 12वी में थे इसलिए बाबा हमारी पढ़ाई की ज्यादा ही नज़र रखने लगे। खेलने का टाईम कम और पढ़ने का टाइम बढ़ा दिया गया। आए दिन स्कूल और घर दोनों ही जगह हमारी क्लास लगने लगी। जितना सरल मैंने आर्ट्स को समझा था ये उतनी भी सरल नहीं थी। बस एक इतवार ही हमारा होता जिसमें हम खेलने जाया करते।
शाम का समय था, आरिफ़, प्रशांत, शिल्पी और मैं झूले पर झूल रहे थे, तभी प्रशान्त ने सवाल किया, "अच्छा ये बताओ, 12वी के बाद क्या करोगे तुम लोग?"
इस सवाल का हम सब में से किसी के पास कोई जवाब नहीं था।
"जब टाईम आएगा तब देख लेंगे।" आरिफ़ बोला। हम दोनों ने भी हांँ में सर हिला दिया।
"तुम क्या करोगे?" शिल्पी ने प्रशांत की ओर देखकर उससे पूछा।
"मैं...... जब टाईम आएगा तब देख लूंँगा।" कहकर वो भी हस दिया और फिर हम तीनों भी।
12वी पास करने के बाद वो दिन आ गया था जब हमको अपने कॉलेज का चयन करना था। शिल्पी और मेरा सपना था कि बाबा के कॉलेज से पढ़ाई करेंगे फिर पढ़ाई पूरी होने पर उनके ही हाथों से टोपी और सर्टिफिकेट भी लेंगे इसलिए हमने वही कॉलेज चुना जिसमें बाबा पढ़ाते थे हमारी देखा देखी आरिफ़ और प्रशांत ने भी वही कॉलेज चुना। स्कूल से शुरू हुई हमारी 4 लोगों की टोली अब कॉलेज में भी साथ ही रहने वाली थी। कॉलेज खुलने में अब बस कुछ ही दिन बचे थे। अच्छे नंबर लाने और उनके ही कॉलेज में एडमिशन लेने की खुशी में हमें हमारा पहला फ़ोन मिला था।

© pooja gaur
Pooja Gaur