काली कुर्सी
#कालीकुर्सी
भईया इस कुर्सी की क्या कीमत है बताना जरा। किस कुर्सी की, इसकी? पास पड़ी कुर्सी के तरफ़ इशारा करते हुए, नंद ने कहा। नंद इस दुकान में काम करने वाला एक मुलाज़िम है। तभी सरिता ने कहा नही भईया ये वाली नहीं, ये वाली तो मेरे बाबू को पसंद ही नहीं आएगी। उसकी पसंदीदा रंग काला है, मुझे वो वाली कुर्सी चाहिए। दूर पड़े शीशे के उस पार पड़ी आलीशान काली कुर्सी, किसी राजा की सिंहासन सी जान पड़ रही थी... मुझे तो वो ही कुर्सी चाहिए सरिता जैसे जिद पे अड़ गई
उस कुर्सी को देख के ना जाने क्य ों वो मंत्रमुग्ध सी हो गई।
पर मैडम,ये कुर्सी तो बिकाऊ नहीं है ये तो सिर्फ ऐसे ही रखी है....
तो ठीक है ,तुम एक ऐसी ही कुर्सी बनावा दो, बिल्कुल ऐसी रंग उसका काला हो ।
नंद ने सिर हिला के हामी भर दी
उसने बड़े ही दिल से टीक की लकड़ी वाली कुर्सी त्यार कर दी और उसपर काले रंग की पुताई कर दी वो इस कुर्सी को ऐसे सजा रहा था जैसे कोई दुल्हन को सजा रहा हो।
आज कुर्सी को लेने के लिए सरिता आ रही थी नंद बड़ी बेसब्री से उसका इंतजार कर रहा था आखिर उसकी मेहनत की कमाई आज उसे मिलने जा रही थी,जिससे वो अपनी बीवी के लिए नई साड़ी और गुड़िया के लिए खिलौने ले के जाने वाला था
आज इतने दिनो बाद वो भी नए साल में अपने परिवार के साथ नया साल मनाकर खुद को किसी शहंशाह से कम नही मान रहा था
ये काली कुर्सी मानो आज उसके लिए किसी राजगदी से कम नही थी
#शॉर्ट स्टोरी #काली कुर्सी# fun time# story time
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भईया इस कुर्सी की क्या कीमत है बताना जरा। किस कुर्सी की, इसकी? पास पड़ी कुर्सी के तरफ़ इशारा करते हुए, नंद ने कहा। नंद इस दुकान में काम करने वाला एक मुलाज़िम है। तभी सरिता ने कहा नही भईया ये वाली नहीं, ये वाली तो मेरे बाबू को पसंद ही नहीं आएगी। उसकी पसंदीदा रंग काला है, मुझे वो वाली कुर्सी चाहिए। दूर पड़े शीशे के उस पार पड़ी आलीशान काली कुर्सी, किसी राजा की सिंहासन सी जान पड़ रही थी... मुझे तो वो ही कुर्सी चाहिए सरिता जैसे जिद पे अड़ गई
उस कुर्सी को देख के ना जाने क्य ों वो मंत्रमुग्ध सी हो गई।
पर मैडम,ये कुर्सी तो बिकाऊ नहीं है ये तो सिर्फ ऐसे ही रखी है....
तो ठीक है ,तुम एक ऐसी ही कुर्सी बनावा दो, बिल्कुल ऐसी रंग उसका काला हो ।
नंद ने सिर हिला के हामी भर दी
उसने बड़े ही दिल से टीक की लकड़ी वाली कुर्सी त्यार कर दी और उसपर काले रंग की पुताई कर दी वो इस कुर्सी को ऐसे सजा रहा था जैसे कोई दुल्हन को सजा रहा हो।
आज कुर्सी को लेने के लिए सरिता आ रही थी नंद बड़ी बेसब्री से उसका इंतजार कर रहा था आखिर उसकी मेहनत की कमाई आज उसे मिलने जा रही थी,जिससे वो अपनी बीवी के लिए नई साड़ी और गुड़िया के लिए खिलौने ले के जाने वाला था
आज इतने दिनो बाद वो भी नए साल में अपने परिवार के साथ नया साल मनाकर खुद को किसी शहंशाह से कम नही मान रहा था
ये काली कुर्सी मानो आज उसके लिए किसी राजगदी से कम नही थी
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