...

10 views

प्यार और शादी
#writcoquote #writco #love #story
प्यार और शादी शायद किसी ज़िन्दगी के नदी में वो दो किनारे हैं जिसमें एक इंसान सिर्फ समझौता कर पाता है। कभी उसकी नाव इस किनारे लगती तो कभी उस किनारे और ना तो उसमें कोई डूब सकता है और ना ही उससे बाहर निकल सकता है। ख़ैर मुद्दा ये है कि आप कितने अच्छे तैराक हैं इसलिए जितनी समझदारी से आप समझौते को मंजूरी देंगे उतनी ही शांतिपूर्ण आपकी ज़िंदगी होगी।
यहां अगर शांति शब्द के विपरीत अर्थ को देखा जाए तो हालात आप समझ सकते हैं। अक्सर आपने देखा होगा जो लोग विद्रोही व्यवहार के होते हैं उनके जीवन में शांति सिर्फ शब्द मात्र होते हैं और यह विद्रोह कभी समाज, प्रशासन, परिवार तो कभी अपने आप से भी होता है।
अब हम लौटते है विषय वस्तु की ओर जहां मैंने प्यार और शादी को दो किनारा कहा है। अक्सर प्यार के परिभाषा में हमसब ने यही पड़ा होगा कि इसके एहसास पर कोई ज़ोर नहीं चलता, इसका ना कोई मजहब है और न जात न धर्म,
ना कोई हिसाब ना किताब और ना स्वार्थ। अगर होता है तो सिर्फ सुकून और समर्पण, आपके पास कुछ नहीं होता फिर आपको उन्हीं एहसासों में पूर्णता की अनुभूति होती है और जरूरत पड़ने पर आप सबकुछ समर्पित कर सकते हैं फिर चाहे वो समर्पण शारीरिक, मानसिक और आत्मिक क्यों न हो। किसी ने सच ही कहा है प्यार अंधा होता है, शायद इसके पीछे का तथ्य यह है कि इसमें दिल की हुक़ूमत चलती है दिमाग पर और इस तरह हम जो भी फैसले लेते हैं वो भावनाओं में बह कर लिए जाते हैं, तब न हमें सही का पता होता है न गलत की समझ। ये भावनाएं इतनी प्रबल होती है कि यह रिश्ते की मर्यादा पर भारी पड़ सकती है जिसका उदाहण हम आए दिन अख़बारों में पढ़ते, न्यूज चैनलों में देखते और सुनते रहते हैं। जिस तरीके से एक सिक्के के दो पहलू होते है उसी तरह इसके भी दो पहलू हैं और यह आप पर निर्भर करता है कि आप कौन सा पहलू चुनना पसंद करते हैं। अब तक तो आप समझ ही चुके होंगे कि ऐसी भावनाएं किसी के जीवन में क्या स्थान और महत्व रखती है, किस तरह यह आपके आसपास की चीजों को भी प्रभावित करती हैं तो मेरे समझ से यह तय करना हमारे हाथ में होता है कि ऐसी प्रबल भावनाएं हम कैसे इंसान के लिए पनपने दे रहें हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि अगर आपका साथी वास्तव में आपका सारथी भी बन सकता है तो आप अपने दिल के लगाम में बेशक ढिलाई से सकते हैं, अन्यथा आपको पता ही होगा कि जीवन के सारे कठिन फ़ैसले दिमाग से ही लिए जाते हैं भले ही ये आपके लिए कितनी भी तकलीफदेह क्यों ना हों। किसी भी रिश्ते की नींव होती है विश्वास और इज्ज़त, अगर इन दोनों की पकड़ मजबूत हो तो वहां अपनेपन का एहसास होता और फिर वही अपनापन धीरे धीरे प्यार में कब परिणत हो जाता है। इसकी आपको खबर नहीं लगती। सभी रिश्तों से ख़ूबसूरत इसका एहसास और साथ होता है, एक अलग ही सुकून होता है। लेकिन अफ़सोस की बात तो ये है कि हमेशा के लिए इस दुनिया में कुछ भी नहीं होता, वक्त के साथ सब बदल जाता है, अलग कुछ नहीं बदलता तो वह है आपकी सोच और आपका आचरण, लेकिन अभी के दौर में इसकी भी कोई गारंटी नहीं होती है। जिस प्रकार आप किसी किताब के उपरी परत को देखकर या किसी कविता के शीर्षक को पढ़कर, उसके पीछे छुपे कहानी को नहीं जान सकते उसी प्रकार किसी भी इंसान के सिर्फ रंग - रूप, शैक्षणिक योग्यता और पेशा के आधार पर, आप उसकी मानसिकता, सोच और व्यवहार का अंदाजा तो लगा सकते है लेकिन उसके दिल और आत्मा की गहराई को समझने में वक़्त लगता है जो दुर्भाग्य से अभी के लोगों के पास नहीं होता, वक़्त की तो छोड़िए उनके पास सब्र भी नहीं होता। अक्सर इसी दोनों के अभाव में अधिकांश रिश्ते दम तोड़ देते हैं और इस कदर कड़वाहट भर जाती है कि न तो इंसानियत की जगह बचती है और न प्यार की। फिर नफ़रत अपना असर यूं दिखाती है कि जो दो लोग एक दूसरे से मिलने के लिए तरसते थे वो अब नजरें मिलाने से भी कतराते हैं और विश्वास की असली परख तभी होती है जहां पर विश्वास न होने की सबसे अधिक संभावना होती है। उस अविश्वास की संभावना में स्थिति आपके रिश्ते की गहराई पर निर्भर करता है और यहीं पर आपके साथी और आपकी समझदारी की झलक मिलती है। किसी भी रिश्ते में प्यार के अलावा एक ओर शब्द महत्वपूर्ण है जिसका नाम है समझदारी। मैंने कई बार देखा है लोगों को समझदारी और समझौता को तराजू के एक ही पल्ले पर रखते हुए। बेशक दोनों की स्थितियां आपके सोच और समझ से ही पैदा होती है लेकिन वास्तविक आधार पर दोनों अलग है। अपने अनुभवों के आधार पर में यह कह सकती हूं समझदार होने का अर्थ यह है कि आपको ज़िन्दगी और इंसान की वास्तविकता की कितनी जानकारी है वहीं दूसरे शब्दों में आप एक सिक्के के दोनों पहलुओं को दूसरों की अपेक्षा अच्छे से देख और समझ सकते हैं। इस संदर्भ में एक उदाहरण ले सकते हैं कि आपको पता होता है कि कोई परफेक्ट नहीं होता मतलब किसी भी इंसान में अच्छाई और बुराई दोनों होती है जो वक़्त और परिस्थिति के हिसाब से बदल भी सकती है लेकिन यह आप पर निर्भर है कि आपको क्या चाहिए। ऐसी स्थिति में समझदारी की बात तो यह है कि अगर आप भी इंसान से परफेक्ट होने की उम्मीद लगाते हैं तो आप खुद को तकलीफ देने की तैयारी में लगे हुए हैं। अब उस अविश्वास की संभावना में अगर आप अपने साथी के मानसिक स्थिति को समझ कर, उस पर अधिक भरोसा दिखाते हैं और उसकी गलती को अगर आप प्यार से गलत ठहरा सकते है तो शायद आपके प्यार और अपनेपन का एहसास
उसे गलत रास्ते पर जाने से रोक सकता है या उसे वहां से वापस भी ला सकता है। वहीं दूसरी तरफ उस प्यार और अपनेपन की जगह, गुस्सा, शक और विश्वासघात का आभास हो तो रिश्ता तो बुरी तरह टूटता ही है साथ ही आप भी टूटते हैं। इस जगह पर मैंने कई लोगों को समझौता करते भी देखा है और कभी कभार तो ये धमकी भरा भी होता है कि अगर तुमने ऐसा किया तो मैं ऐसा करूंगा या करूंगी। लेकिन मेरे हिसाब से समझौतों या धमकियों की जरूरत युद्ध में होती है तो क्या हमें रिश्तों को पृष्ठभूमि एक युद्धस्थल है? खैर आपका जवाब जो हो मेरा जवाब होगा.... नहीं क्योंकि यहां मतभेद हो सकते हैं, नोकझोक हो सकती है या कभी कभार झगड़े भी हो सकते है लेकिन यह युद्ध का स्थल नहीं हो सकता या अगर कभी ऐसा हो भी गया तो वह रिश्ता रूह का नहीं हो सकता। अक्सर जो रिश्ते रूह से जुड़े होते हैं वहां दिल और दिमाग की अहमियत थोड़ी कम हो ही जाती है बल्कि जब हम किसी को रूह में बसाकर दिल से चाहते हैं तो उसे तकलीफ देने के बारे में सोच भी नहीं सकते और ना ही उसे कभी बद्दुआ दे सकते है चाहे हमें कितना भी बुरा लगे भले हमारे दिल से दुआ न निकले पर बद्दुआ नहीं निकल सकती। वैसे भी प्यार या अपनापन कोई ज़बरदस्ती थोपने वाली भावना तो नहीं है बल्कि ये वो एहसास है जो खुद ब खुद पनपता है। शायद तभी ऐसी स्थिति में हम सामने वाले की खुशी के लिए कुछ भी कर सकते हैं यहां तक की उनसे दूर भी...stay tuned.......
© Rhycha