बड़ी हवेली (कल आज और कल)
"वीरे ओ वीरे, रुक मैं भी आ रहा हूँ, देख माँ ने गाजर का हलवा बनाया है, अरे थोड़ा धीरे चल अभी पाठशाला शुरु होने में बहुत समय है, साथ में बैठ कर खाया जाएगा, सुन न यार जीते आज गणित की परीक्षा के वक़्त थोड़ा मदद कर देना," 15 वर्ष का हरप्रीत अपने मित्र इंद्रजीत से कहता है।
उसका मित्र इंद्रजीत जवाब देता है" ठीक है मैं तेरी मदद कर दूँगा बस याद रखना गाजर का हलवा पूरा मैं खाऊँगा "।
" हाँ,.. चल खा लेना, पर मदद ज़रूर करना ", हरप्रीत अपने मित्र से कहता है।
पाठशाला के बाद दोनों सीधा अपने घर की ओर जाते हैं, गाँव के चौराहे पर काफ़ी भीड़ लगी थी, इंद्रजीत का घर वहीं पर था, दोनों दौड़ते हुए भीड़ को चीरकर घर के मुख्य दरवाज़े से अंदर पहुंचते हैं, सामने चार लाशें रखी थीं जो सफ़ेद चादर से लिपटी हुई थीं, उनमें से एक लाश हरप्रीत के पिता की थी और बाकी तीन लाशें इंद्रजीत के पिता और दो बड़े भाईयों की थीं। घर में मातम का माहौल छाया हुआ था, एक ओर घर और पड़ोस की महिलाएँ बैठकर रो रहीं थीं तो दूसरी ओर पुरुषों का झुंड सिरों को झुकाए बैठा था, इंद्रजीत और हरप्रीत रोते हुए उन लाशों से लिपट गये, कुछ महिलाएं उनके करीब आकर उन्हें चुप कराने में लग गईं। इंद्रजीत अपनी माँ से लिपट गया और बोला "ये क्या हो गया माँ, कैसे और किसने किया ये", उसकी आँखें बदले के क्रोध से भरी हुई थीं जो आँसुओं के रूप में बह रही थीं।
"सच्चे बादशाह की सेवा करते हुए तेरे पिता शहीद हुए हैं बेटा, ये फक्र की बात है, शाहजहाँ की सेना से लड़ते हुए उन्होंने और तेरे भाइयों वीरतापूर्वक अपने प्राणों की आहुति दी है, तुझे भी इन्ही...
उसका मित्र इंद्रजीत जवाब देता है" ठीक है मैं तेरी मदद कर दूँगा बस याद रखना गाजर का हलवा पूरा मैं खाऊँगा "।
" हाँ,.. चल खा लेना, पर मदद ज़रूर करना ", हरप्रीत अपने मित्र से कहता है।
पाठशाला के बाद दोनों सीधा अपने घर की ओर जाते हैं, गाँव के चौराहे पर काफ़ी भीड़ लगी थी, इंद्रजीत का घर वहीं पर था, दोनों दौड़ते हुए भीड़ को चीरकर घर के मुख्य दरवाज़े से अंदर पहुंचते हैं, सामने चार लाशें रखी थीं जो सफ़ेद चादर से लिपटी हुई थीं, उनमें से एक लाश हरप्रीत के पिता की थी और बाकी तीन लाशें इंद्रजीत के पिता और दो बड़े भाईयों की थीं। घर में मातम का माहौल छाया हुआ था, एक ओर घर और पड़ोस की महिलाएँ बैठकर रो रहीं थीं तो दूसरी ओर पुरुषों का झुंड सिरों को झुकाए बैठा था, इंद्रजीत और हरप्रीत रोते हुए उन लाशों से लिपट गये, कुछ महिलाएं उनके करीब आकर उन्हें चुप कराने में लग गईं। इंद्रजीत अपनी माँ से लिपट गया और बोला "ये क्या हो गया माँ, कैसे और किसने किया ये", उसकी आँखें बदले के क्रोध से भरी हुई थीं जो आँसुओं के रूप में बह रही थीं।
"सच्चे बादशाह की सेवा करते हुए तेरे पिता शहीद हुए हैं बेटा, ये फक्र की बात है, शाहजहाँ की सेना से लड़ते हुए उन्होंने और तेरे भाइयों वीरतापूर्वक अपने प्राणों की आहुति दी है, तुझे भी इन्ही...