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बुआ और पापा
अपनी बुआ के जीवनहीन शरीर के सामने बैठी हूं । सब रो रहे हैं । इस रूदन में मैं खो गई हूं कहीं । कुछ के चेहरों पर झूठे तो कुछ के चेहरों पर पीड़ा से उमड़ रहे आंसू दिखाई दे रहे हैं।
बुआ ठीक पापा की तरह दिखाई दे रही हैं । पापा हमेशा कहा करते थे," लीला और मैं एक घाट के हैं ।" सच कहते थे । आज लग रहा है पापा का एक और हिस्सा धूमिल हो गया है।
आज लग रहा है , अपने माता पिता के भाई बहन भी कितने ज़रूरी हैं जीवन में। वो याद दिलाते हैं कि आप जिन्हें रोज ढूंढते हो, वे अब भी कुछ हिस्सों में जीवित हैं । और उन जीवित हिस्सों से लगाव होने लग जाता है । ज्यादा ,और ज्यादा ।
पता नहीं ये दिल इस सच्चाई को कब अपना पाएगा ?
" जिंदगी का नाम ही है जाने देना "
© preet