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#बेटियां
यूं ही सोच रही थी मैं आज कि बहुत ही अजीब लगता है ना जब हम लाख चाह कर भी उन लोगों को समझ नहीं पाते जिनके साथ हम बचपन से रहते हैं। समझ में ही नहीं आता कि वो जो दिखते हैं जो होते हैं और जो सोचते हैं वो सब एक जैसा क्यों नहीं होता।
वो बचपन से हमें बहुत प्यार करते हैं हमारी हर छोटी से छोटी बात का, जरूरतों का, ख्वाहिशों का ख्याल रखते हैं, ऐसा लगता है जैसे इनसे ज्यादा हमारी खुशी का ख्याल हम खुद भी नहीं रख सकते। वो ही लोग जो बचपन में हमारे एक भी आंसू निकल जाने पर 10 बार पूछते थे क्या हुआ क्या हुआ......? हम उनसे ही अपने आंसू छुपाते छुपाते कब बड़े हो जाते हैं पता ही नहीं चलता। कभी दोस्तों (सहेलियों) के साथ किसी पार्क में हंसते हुए या फोटो लेते हुए या यूं कहें कि कोई खुशनुमा यादगार पल बिताते हुए कभी कोई लड़का गंदे कमेंट करे तो हमें घर पर समझाया जाता है कि तुम्हारी गलती थी क्या जरूरत थी जाने की ज़ोर से हंसने की।
शायद यही वो समय होता है जब हमारे मन में बहुत से सवाल आते हैं, सवाल कभी खुद के लिए तो कभी उनके लिए जो कल तक हमारी गलती पर भी हमें गलत नहीं कहते थे और जो आज बिना गलती के हमें ही गलत ठहराते हैं। प्रेम...... अब तो इस शब्द पर भी हंसी आती है। वो प्रेम जिसे हर हिंदी फिल्म में दिखाया जाता है हर सीरियल का आधार होता है जिसे देखना घर के हर व्यक्ति पसंद करते हैं जिसे देख अक्सर भावुक भी हो जाया करते हैं अगर वहीं प्रेम हम लड़कियों को हो जाए तो फिर क्या कहना..... तब हमें वही घर वाले बहुत ही सम्मानित शब्दों (अपशब्दों) से हमें अवगत कराते हैं ऐसा बर्ताव करते हैं जैसे हमने प्यार नहीं कोई पाप किया हो। माना ये प्रेम भी गलत है उनकी नज़र में पर इतना गलत कि हमसे घर भी सभी का बात बर्ताव बदल जाता है। वो जिन्हें कल तक हमारे खाने पीने की फ़िक्र हुआ करती थी उन्हें आज ये ख़्याल भी नहीं आता की उनके इस बर्ताव से हमने खाना भी खाया या नहीं।
फिर बहुत ही कम दिनों में हमें एक लड़के की फोटो दिखाई जाती है ... नहीं नहीं पसंद है या नहीं ये पूछने के लिए नहीं बल्कि ये बताने के लिए कि इसके साथ तुम्हें अपनी पूरी जिंदगी जीनी है।

अपने सपने अपनी खुशियां सबकी चिता जला देती हैं बेटियां..!!

भूलकर अपने प्यार को सबकी नराजिगी अपना लेती हैं बेटियां..!!

ले रूप दुल्हन का एक रोज़ अपनी अर्थी सजा दे ती हैं बेटियां..!!

जाज़बात अपने दिल के अब किसी से कह नहीं पाती हैं बेटियां..!!

तब यकीन होता है हमें, अब अपनों को समझ पाना है मुश्किल..!!

फिर खुद से खुद को हारकर, खुद को समझा लेती हैं बेटियां..!!

© वज़ह