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मेरा स्वाभिमान
"स्वाभिमान" अपने आप में अनमोल होता हैं सभी लोगो का अपना अपना स्वाभिमान उनका अभिमान भी हो जाता हैं।स्वाभिमान पर कुछ लिखने की छोटी सी मेरी कोशिश,उम्मीद आप सभी को पसंद आए..!! 🙏
* मेरा स्वाभिमान*
डरी हुई सी सहमी हुई शांँता मांँ घर के बाहर बैठी हुई थीं साथ ही कुछ आस पास के रहवासी भी बैठे हुए हैं । सहसा शांँता मांँ का बेटा उमेश आया है और उन पर बरस पड़ता है।उमेश_"क्या जरूरत है तुम्हें रोज रोज का बवाल मचाने की।दिन उगते ही भूखे मर गई थी क्या..?दोनो समय खाना बना कर खिला रही है रमा,फिर भी..!कमबख्त फंस गया हूंँ मैं तुम्हें गांँव से शहर ला कर,रोज का झगड़ा अब बर्दास्त नहीं होता।"गुस्से में जोर से चिल्ला कर जल्दी जल्दी अपनी भड़ास निकाल कर उमेश ऑफिस चला गया।
शांँता मांँ को रोना आ गया लेकिन वो आंँसू छुपाने की कोशिश कर रही थीं आस पास बैठी हुई कुछ बुजुर्ग महिलायें उनके पास आई और बोली_"दिल छोटा मत करो शांँता बहन अब ये कहानी घर घर में हो गई है हमारे भी हाल कुछ इस तरह के ही है"।
बिना उनसे कुछ कहें शांँता मांँ अपने घर गई । चौखट पे पाँव रखते ही बहु रमा आंँखे तरेरती हुई दहाड़ पड़ी _"मिल गई कलेजे में ठंडक ।मुझे पूरे शहर में बदनाम करके ।खुद से तो कुछ होता नहीं, बस आ गई शहर का बहाना ले कर।अरे.! गांँव में ही पड़ी रहती तो अच्छा था कम से कम मेरी जान तो नही खाती। सिर्फ़ नाम ही शांँति है बाकी तो जीवन में क्रांँति मचा रखी है"।
बहु की बात कड़वी थी लेकिन बेटे की बात शूल की तरह चुभ रही थी।बहु तो पराए घर से आई लेकिन बेटे को तो मैंने जन्म दिया और लालन पालन भी किया। जब वो नही समझा तो बहु से शिकायत क्या..?
बिना किसी वाद विवाद के शांँता मांँ अपने कमरे जो कि तीसरी मंज़िल पर है ,चली गई।चढ़ाव चढ़ने में तकलीफ होती है लेकिन आज के तमाशे के आगे कुछ नहीं।पहले बात घर तक सीमित थी लेकिन आज पूरा मोहल्ला जान गया।
कमरे में अपनी पुरानी सी कुर्सी पर बैठकर शांँता मांँ खिड़की से दूर क्षितिज तक देखते हुए अपने अतीत को सोचने लगी।
गांँव में बहुत बड़े जमींदार की बेटी थी शांँता मांँ।नाम ,शांँति बड़े प्रेम से पिता ने रखा था।पिता जी का बड़ा रुतबा और रुबाब था।बाहर कदम रखते ही सख़्त हिदायत दे दी जाती थी कि तुमसे ही हमारा मान,मर्यादा,स्वाभिमान,सब है कोई गलत कदम मत उठाना,नही हो हमारी इज्जत खराब हो जायेगी।मुझसे ही पिता का स्वाभिमान है और पिता का स्वाभिमान ही मेरा मान है ये बात शांँति ने बचपन में ही मन में ठान ली थी कक्षा 5 के बाद पढ़ाई बंद कर दी क्योंकि आगे की कक्षाओं में लड़के भी शामिल थे किसी लड़के ने छेड़ दिया तो घर का मान खत्म हो जाएगा। कम उम्र में ब्याही गई और चेतावनी दे दी गई कि अब तुम्हारा मान ,स्वाभिमान,सम्मान सब तुम्हारे पति से है ।सास ससुर का कहना तुमको मानना ही है,पिता के यहां जब भी आओ बिना झगड़े से आना नही तो कुएं में गिर जाना।
बचपन से ही शांँति दबाव में ही बड़ी हुई अपनी खुदगर्ज़ी को सभी ने स्वाभिमान का नाम दे दिया और शांँति पर थोप दिया।पिता और पति दोनो का स्वाभिमान शांँति के हाथों में था।पूरा जीवन काम और बाल बच्चे संभालना ही उसका स्वाभिमान हो गया।70 वर्ष की हुई तब पति का साथ छूट गया।जागिरी अकेले शांँता मांँ से संभलती नही,बेटा शहर में पढ़ते हुए ही प्रेम विवाह में बंँध गया,लोक लाज से मांँ को लेकर आया लेकिन जो सम्मान की हकदार है शांँता मांँ,वो उन्हें दे नहीं पाया।पिता की संपत्ति का वो अकेला वारिस है इसी मन सा से मांँ को शहर लाया लेकिन शहर में पता चला कि पिता के देहांत के बाद तो सब कुछ मांँ का हो गया और मांँ चाहे तो मुझे या किसी अन्य को भी दे सकती है।
उम्र के हिसाब से शांँता मांँ को सुबह जल्दी भूख लगती है लेकिन 9 बजे बेटे बहु जागते हैं फिर जल्दी कैसे भोजन मिले,कई बार तो बिस्किट और ब्रेड से समय निकाला और कल रात को तो हद ही हो गई पिज़्ज़ा का सिर्फ एक पीस (टुकड़ा) ही दिया गया।भूख लगी है कहने पर झगड़ा होता था और बेटा कहता "दोनो समय खाने पीने को मिलता है फिर भी रमा से झगड़ा कर अपना स्वाभिमान कम क्यों करती हो"।
स्वाभिमान हां मेरा स्वाभिमान ...? पहले पिता,भाई,पति फिर बच्चें इन सबमें मेरा मान,सम्मान ,स्वाभिमान कहाँ..?
बात विचारणीय थी शांँता मांँ ने गांँव से अपने भतीजे को बुलाया और बहु बेटे को बिना बताए अपने गांँव आ गई।अपनी सारी खेती ठेके पर दे कर, एक अनाथ लड़का अपनी सहायता के लिए रख लिया।
सब कुछ ठीक था तब शांँता मांँ ने विचार किया,"गांँव के बहुत सारे बेटे शहर से बस गए,मेरी तरह किसी अन्य का स्वाभिमान नही गिरना चाहिए।सोच कर शांँता मांँ ने "मेरा स्वाभिमान"न ामका परिसर बनाया और परिवार से ठुकराए हुए लोगो को अपना बनाया ।कल तक जो शांँता मांँ बेटे बहु के ताने सुन रही थी आज कई बुजुर्गो को स्वाभिमान से जीना सीखा रही है ।

स्वाभिमान जरूरी है लेकिन जब मांँ बाप की बात आए तो अपने स्वाभिमान को अभिमान मत बनने देना।जिनसे अपना अस्तित्व है उनके सामने अपनी अकड़ मत दिखाना।पूरी दुनिया को खुश नहीं कर सकते लेकिन कोशिश इतनी होनी चाहिए कि मांँ बाप दुखी नहीं रहे...!! 🙏
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