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पद्मिनी भाग १
सिहंलद्विप की राजकुमारी थीं वो
रुप की रानी थीं वो गढ चित्तौढ की महारानी थीं वो
नाम उनका था पद्मिनी उनका सखा एक हीरामन तोता था
तोता दुर्दिन का शिकार हो बहेलिये के हाथ लगा था
हाट में बहेलिये से ब्रहामण ने खरीदा था
तोता ब्राह्मण के साथ रत्नसेन के दरबार में आया था
गुणी तोते को राजा ने पहचाना था
और उसका लाख टका मोल चुकाया था
तोता अच्छी अच्छी बातें करता था
और राजा का मन खुश रखता था
एक दिन उसने सिहंलद्विप के विषय में बताया था
पद्मिनी का गुणगान और रूप का वर्णन सुनाया था
नख से लेकर शिख तक का गाना गाया था
सुनकर राजा मदहोश हुए
खुद पर काबू रख न पाए थे
बस एक लगन थी पद्मिनी के दर्शन कर लूं
अपना जीवन धन्य कर लू पद्मिनी से मिलने
चल पड़े थे सिहंलद्विप
सिहंलद्विप पहुंच राजा गंधर्वसेन को अपने दिल का हाल सुनाया था
सुनकर राजा प्रसन्न हुआ था
मन में पद्मिनी के विवाह का विचार आया था
गंधर्वसेन से भेंट हुई पर रत्नसेन पद्मिनी से मिल न पाए थे
पद्मिनी से मिलने को अनेकों रुप धरे थे
कभी योगी बनें कभी भिक्षुक बने
कभी तपस्वी के रूप धरें थे
इक दिन हीरामन तोते ने रत्नसेन की व्याकुलता सुंदरता, प्रेम और वीरता का गान
पद्मिनी को जा सुनाया था
रत्नसेन की सुंदरता और यशोगान सुनकर
पद्मिनी मुग्ध हुईं
ज्यों पतंगा दीपशिखा की ओर खींचें
ऐसे पद्मिनी रत्नसेन की ओर खींचीं
अंततः रत्नसेन पद्मिनी का मिलन हुआ
चांद को चांदनी मिली शंकर को गौरी मिलीं
ज्यों राम को सीता मिलीं

क्रमशः

© सरिता अग्रवाल