...

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#सफर
मेरे प्रिय पाठकों, बात उस समय की है जब
मैं अपनी बहन के घर से लौट रहा था तब मैं
दिल्ली के हजरत निजामुद्दीन स्टेशन पर बैठा
हुआ था घड़ी में करीब दिन के 12 बजे थे और
मैं अपनी ट्रेन का इंतजार कर रहा था और मेरी
ट्रेन करीब 4.30 बजे शाम को आने वाली थी मेरे
पास काफी वक्त था और मैं किताब पढ़ता हुआ
अपना वक्त निकाल रहा था तभी अमृतसर जाने
वाली ट्रेन स्टेशन पर आ जाती है और ट्रेन में काफी भीड़ रहती है यात्री धक्का मुक्का करते
हुए ट्रेन में चढ़ने लगे। और तभी मैंने देखा कि एक वृध्द महिला उस ट्रेन की स्लीपर कोच में
चढ़ने का प्रयास कर रही है और तभी ट्रेन चलने
लगती है और मैं दौड़कर उस महिला के पास गया और उनको ट्रेन में चढ़ने से रोक दिया।
मैंने उनसे कहा देखिए दादी जी आप रुक जाओ
ट्रेन ने स्पीड पकड़ ली है आपको चोट लग जायेगी। तभी वह जोर जोर से रोने लगीं मैने
उनसे रोने का कारण पूछा तब उन्होंने बताया
कि मैं और मेरा बेटा दोनों को अमृतसर जाना है
मगर ट्रेन तो छूट गई और हम दोनों के टिकट मेरे
पास हैं और जिस ट्रेन का रिजर्वेशन टिकट है वह
ट्रेन अभी छूट गई अब मैं क्या करूं बेटा नई दिल्ली स्टेशन पर मेरा बेटा मेरा इंतजार कर रहा
होगा मुझे किसी तरह नई दिल्ली स्टेशन पहुंचा
दो। तब मैंने उनसे कहा आप मेरी दादी के समान हैं मैं आपकी मदद जरुर करूंगा और मैंने
बिना देरी किए उनका सामान उठाया और स्टेशन के बाहर चल दिया बाहर टैक्सी चालक से मैंने कहा भाई नई दिल्ली स्टेशन पर अमृतसर
ट्रेन पकड़नी है पहुंचा दोगे उसने कहा जी ट्रेन के पहले
पहुंचा दूंगा और फिर फटाफट मैं दादी के साथ टैक्सी में बैठ गया और सचमुच उस टैक्सी ड्राइवर ने ट्रेन के पहले हमें नई दिल्ली स्टेशन
पहुंचा दिया मैंने उस टैक्सी ड्राइवर को पैसे दिए
और उसे धन्यवाद किया और फिर जल्दी से सामान लेकर दादी के साथ नई दिल्ली स्टेशन के
प्लेटफार्म नंबर 1 पर पहुंचा और तभी दादी ने अपने बेटे के ओर इशारा करते हुए मुझसे कहा
देखो वो रहा मेरा बेटा और यकीन मानिये मुझे
उस समय बहुत खुशी हुई तब दादी जी ने सारी
बात अपने बेटे को बताई तब उनके बेटे ने मेरा
धन्यवाद किया और दादी जी ने मेरा माथा चूमते
हुए ढेर सारा आशीर्वाद दिया और अपना फोन
नंबर दिया और कहा बेटा मुझसे बात जरूर करना और कभी टाइम मिले तो बेटा अमृतसर
जरूर आना। और इतना कहकर वो वहां से चली गई और मैं भी उनको जाते हुए देख रहा
था और मेरी आँखों से खुशी के आंसू बह रहे थे
शायद मैं भावुक हो गया था और मैं मन ही मन
बहुत खुश था कि मैं आज किसी के काम तो आया और फिर मैं टैक्सी लेकर वापस हजरत
निजामुद्दीन स्टेशन के लिए निकल पड़ा और शाम को अपनी ट्रेन पकड़कर अपने शहर सागर
पहुंच गया। और ठीक लगभग 10 दिन के बाद
मैंने दादी जी को फोन कर के उनका हाल चाल
पूछा और उनसे मिल कर भी आया उन्होंने मेरा
बहुत स्वागत किया और बहुत प्यार भी दिया
सचमुच यह बहुत ही अद्भुत और अविस्मरणीय
पल था मेरे लिए। मेरे प्रिय पाठकों अगर आपको
अपने जीवन में किसी की मदद करने का मौका
मिले तो आप जरूर करना और हां अंत में एक बात और मैं आपसे कहना चाहता हूं यह कोई
कहानी नहीं है यह एक सत्य घटना है जो मेरे
साथ घटित हुई आशा करता हूं कि आप मेरी इस
छोटी सी कहानी को पसंद करेंगे और मुझे प्रोत्साहन देंगे। आप सभी को मेरा धन्यवाद
#apkashayarmanish
© Manish Singh