...

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सड़क किनारे
हे..... ये मैं हूं लवकुश गुप्ता, एक लेखक, एक संगीत प्रेमी, या
तुम मुझे सिर्फ लव गुप्ता भी कह सकते हो.........

यह बात जून जुलाई की थी,
मैं रोज की तरह आफिस के लिए निकला था
समय पर, पर जैसे की मेरी आदत है,
चीजें भूलने की, और मैं अपना छाता घर भूल आया,

और आज का मौसम भी कुछ ज्यादा ही ठंडा था,
बादल आसमान पर छाये हुए थे,
और कभी भी बरस सकते थे, मैंने रोज की तरह स्टेशन पर बस के लिए रूका था,

एक तेज आवाज के साथ बस आयी,
और सभी स्टेशन पर खड़े लोग बस की तरफ बढ़े, और मैं भी।
चढ़ते हुए वही रोज की तरह कन्डेक्टर को फीकी सी स्माइल दी, हां उसने आज भी खिड़की वाली सीट खाली छोड़ी थी मेरे लिए,
मैं भी चुपचाप वहां बैठ गया .... बस चल पड़ी,

अहममम हां.. मैं एक काल सेंटर में जाब करता हूं,
और हर महीने सैलरी बचाकर एक बाइक लेने की सोच रहा हूं,
पर फिलहाल बस में ही आफिस जाता हूं,
बस में मुझे थोड़ा समय मिल जाता है
अपने संगीत के बारे में या फिर अपनी नोबल के बारे में सोचने का

खैर करीब आधे घंटे के बाद मैं आफिस के बाहर पहुंच गया था,
मौसम जयू का त्यूं, मैं आफिस के अन्दर गया,
कुछ नयापन नहीं था, वही रोज की तरह गार्ड भैय्या का सलाम साहब जी।

बगल वाली सीट पर बैठे मिश्रा का मुझे डांट मारना कि भई आज भी देर कर दी....
और मेरा सब बातों को इग्नोर कर अपने काम पर लगना,
मन मारकर, रोज अजीब अजीब तरह के काल्स को अटैंड करना।
और फिर शाम को कमरे पर लौटना ये जानते हुए वहां भी कुछ नयापन नहीं है,

लेकिन तब तक मुझे तुम नहीं मिली थी..

मैं अपना काम खत्म कर, आफिस से बाहर निकला,
मौसम ठंडा हो गया था, हल्की हल्की बूंदें आसमान से गिरने लगी।
आफिस के गेट के बाहर गार्ड मुझे देखकर मुस्कुराते हुए बोला....

अरे लव बाबा आज छाता नहीं लाए क्या,
बारिश तेज होने वाली है, भीग जाओगे।
मैं यह कहते हुए तेजी से बस स्टैंड...