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अकेले अपनी बेटी को न जाने देना:-
मैं बात करने जा रही हूं, यहां के लोगों की। जो दिखावा तो 1. करते हैं, लेकिन अंदर से कुछ और ही है और बाहर से कुछ और। यदि मैं एक लड़की की बात करूं तो आप सोच कर देखिए कि जब वो किसी के साथ वांध अर्थात विवाह कर दिया जाता है तब वह किसी और अमानत बन जाती है। वो इंसान चाहे बाद में उसे खुश रखे चाहे मारे चाहे पीटे। विवाह के बाद तो वो लड़की अकेले बाहर भी जा सकती है, या फिर मान लो कि जाने पर मजबूर हो जाती है। उस से पहले यदि हम देखें कि जब वह लड़की अपने मां बाप के पास होती है तो उसे मां बाप भाई उसे अकेले बाहर नहीं जाने देते। शाहिद वो डरते हो कि हमारी बेटी के साथ कोई ऐसी वैसी घटना न हो जाए। लेकिन यदि वो अपनी बेटी को लोगों से लडने के लिए कहते, हिम्मत से उनका सामना करने के लिए कहने तो कहीं व कहीं उनकी बेटी दुसरे लोगों की आवाज के नीचे न दबती। वो मां बाप जो अपनी बेटी को बाहर भेजने से इतना डरते हैं कल को उनको ही अपनी ही बेटी का हाथ किसी अनजान मर्द के हाथों में दे देते हैं। चाहे वो इंसान एक वर्ष बाद बदल जाए। अपनी बेटी को अपने से लाखों मील दूर भेज देते हैं। समझ नहीं आता कि जिस बेटी को अकेले बाहर एक कदम चलने तक न कहा हो वो किसी अंजान मर्द का घर कैसे संभाले गई। वो अकेले घर से बाहर जाकर सब्जी मंडी कैसे जाएगी। आज के समाज को बदलने के लिए साहिब सोच को बदलना होगा क्योंकि मैंने तो पड़े लिखे मानव पीढ़ी को भी गिरी हुई सोच में घिरे पडा देखा है। हमें अपनी सोच को बदलना पड़ेगा, अपने लिए नहीं तो अपने बच्चों के लिए। उन सभी बेटियों के लिए जो डरती है विवाह के बाद अपने मर्द के सामने ऊंची आवाज निकालने से डरती है। जो डरती है अकेले बाहर जाने से। जो डरती है अकेले मर्दों का सामना करने से। आप सभी के साथ से ही हम सभी समाज को बदल पाएंगे। आप सभी के सहयोग की आवश्यकता है।🙏
© Reet❤️