कृष्ण कमल "सत्रहवाँ श्रृँगार" .....भाग -१
"कृष्ण कमल" - सत्रहवाँ श्रृँगार
कहानी के पिछले भाग में श्री ने एक सफेद पुष्प के इंतज़ार में अपने मन को उदास कर बैठी थी..... अब आगे
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मंगल गांव वालों की बाढ़ से रक्षा करके जब नगर लौटता है तो अपने साथ एक सफेद पुष्प भी लाता है जिसे देख श्री बहुत प्रसन्न होती है परंतु श्री अभी उस पुष्प को ठीक से देख भी नहीं पाई थी कि अचानक श्री के हाथों से वह पुष्प तेज हवा के झोंके से महल के झरोखे से होते हुए नदी में जा गिरता है और श्री उस पुष्प को पुनः प्राप्त करने की इच्छा व्यक्त करते हुए उदास हो जाती है और मंगल से गीत के माध्यम से कहती है
करके बैठी मैं सोलह श्रृँगार, सत्रहवाँ श्रृँगार के लिए वही पुष्प ला दो मंगल
सजा कर मुझे काशी से अक्कलकोट का संगम करा दो मंगल
रहती हूँ संग तेरे मैं हर पल, अपने पावन हृदय का स्पर्श दे दो मंगल
मेरी काया बन तु मुझमें ही समा कर...
कहानी के पिछले भाग में श्री ने एक सफेद पुष्प के इंतज़ार में अपने मन को उदास कर बैठी थी..... अब आगे
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मंगल गांव वालों की बाढ़ से रक्षा करके जब नगर लौटता है तो अपने साथ एक सफेद पुष्प भी लाता है जिसे देख श्री बहुत प्रसन्न होती है परंतु श्री अभी उस पुष्प को ठीक से देख भी नहीं पाई थी कि अचानक श्री के हाथों से वह पुष्प तेज हवा के झोंके से महल के झरोखे से होते हुए नदी में जा गिरता है और श्री उस पुष्प को पुनः प्राप्त करने की इच्छा व्यक्त करते हुए उदास हो जाती है और मंगल से गीत के माध्यम से कहती है
करके बैठी मैं सोलह श्रृँगार, सत्रहवाँ श्रृँगार के लिए वही पुष्प ला दो मंगल
सजा कर मुझे काशी से अक्कलकोट का संगम करा दो मंगल
रहती हूँ संग तेरे मैं हर पल, अपने पावन हृदय का स्पर्श दे दो मंगल
मेरी काया बन तु मुझमें ही समा कर...