पुरुष का पुरुषार्थ
किसी पुरूष का पुरुषार्थ उसके पौरुष का नहीं वरन, किसी स्त्री के गर्भ से उत्पन्न हुआ एक ऋण है उस पर,
जिसको उतारने के स्थान पर वह उसे सिर्फ दासता की जंजीरे और परंपराओं से घिरा एक अभेद्य चक्रव्यूह देता है।।
स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ पर भी क्या देश यह कह सकता है कि महिलाएं स्वतंत्र और सुरक्षित हैं.... जैसे पुरुष के अधिकार जन्म से...