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शादी समझौता या जन्मों का बंधन
बदलते परिवेश के साथ लोगों की सोच में भी आज कितना बदलाव आ गया है। कल तक शादी को हम पवित्र रिश्ता मानते थे और सात फेरों को जन्म जन्मांतर का साथ। मगर आज बदल चुके हैं हालात अब यह रिश्ता तो बस नाम के लिए रह गया है और पति पत्नी का साथ समझौता का रुप ले लिया है। हालात ऐसे हैं कि कोई भी
सुनने समझने के लिए तैयार नहीं है। अभी कल की ही बात बताती हूं मैंने एक न्यूज़पेपर में पढ़ा था।पत्नी ने पति का साथ केवल इसलिए छोड़ दिया क्योंकि उसकी सास भी उसके साथ रहने के लिए आ गई थी। जो पत्नी को बिल्कुल भी पसंद नहीं थी। इसी बात को लेकर घर में अक्सर कलह हुआ करते थे। पति का कहना था कि मां अकेली गांव में क्यों रहेगी..?? उनकी तबीयत भी ठीक नहीं रहती है और अब तो पिताजी भी नहीं रहे। कुछ ऊंच नीच हो गया तो गांव वाले हमारे समाज वाले क्या सोचेंगे। अपना पेट काट काट कर जिस बेटे को पढ़ाया लिखाया इस लायक बनाया उस बेटे ने बुढ़ापे में अपनी मां को छोड़ दिया। और बचपन से ही मैं अपने मां के प्यार के लिए तरसता आया हूं।क्योंकि पढ़ाई के कारण मैं हमेशा उनसे दूर हॉस्टल में ही रहा ।अब जब मुझे मां के साथ रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। उनका सेवा करने का मौका मिला है तो क्या मैं उनका साथ छोड़ दूं । ये कभी नहीं हो सकता तुम चाहे मेरा साथ दो या ना दो पर मैं अपनी मां के साथ हमेशा रहूंगा। बड़े खुशकिस्मत होते हैं वह लोग जिनके सर पर उनके माता-पिता का हाथ होता है। अपने बड़े बुजुर्गों का जितना सम्मान करोगी जीवन में उतना ही आगे बढ़ोगी ऊपर उठोगी। और मां के यहां रहने से तुम्हें परेशानी किस चीज की हो रही है। घर का सारा काम भी तो वही करती है। हम दोनों जब ऑफिस जाते है तो हमारे बच्चे को भी मां ही संभालती हैं। ना तुम पर कोई कपड़े पहने खाने पीने या फिर बाहर आने जाने की पाबंदियां हैं। और सबसे जरूरी बात मेरे पैसों से मां यहां नहीं रह रही है। बल्कि मां के पैसों से मैं यहां रह रहा हूं।
तुम्हें पता है अगर मां ने पैसा नहीं दिया होता तो आज यह घर मेरे पास नहीं होता। हम किसी किराए के मकान में रह रहे होते। आभार मानो मां का मां को यहां रखकर मैं उन पर कोई एहसान नहीं कर रहा हूं बल्कि वह यहां रहकर मुझ पर और तुम पर एहसान कर रही है ।क्योंकि घर को और हमारे बच्चे को मां संभाल रही है ।मैं और तुम नहीं..!!पर पत्नी ने पति की एक न सुनी । पति बेचारा बहुत तरह से अपनी पत्नी को समझने की कोशिश करता रहा। मगर कोई फायदा नहीं हुआ।दिन रात उन लोगों की लड़ाई झगड़ों को देखकर मां ने कहा बेटा मैं यहां से चली जाती हूं। अगर मेरे यहां से चले जाने में बहू की खुशी है तो तुम दोनों आराम से रहो मेरी वजह से बिल्कुल भी लड़ाई मत करो मैं चली जाऊंगी। पर बेटे ने मां के पैर पकड़ लिए और कहां मां अगर तुम चली जाओगी तो तुम्हारे पोते का क्या होगा...?? उसे कौन संभालेगा
तुम तो देख ही रही हो तुम्हारी बहू को कितना समझ है घर परिवार संभालने की..! मत जाओ मां हम दोनों तुम्हारे बगैर जी नहीं पाएंगे। बेटे की इन बातों से मां का मन बदल गया और अपने पोते को गले से लगाते हुए कहने लगी मैं कहीं नहीं जाऊंगी तुम लोगों के साथ ही रहूंगी। पत्नी जो वही खड़ी होकर सारी बातें सुन रही थी चुपचाप वहां से अपने कमरे में चली गई और दूसरे दिन तलाक के पेपर अपने पति के हाथों में थमा दी।
पति बेचारा मरता क्या ना करता तमाम कोशिशें करके वह थक चुका था। अपनी पत्नी को मनाने का मगर वह मानने को तैयार ही नहीं थी ।अंत में उसने कांपते हाथों से तलाक के पेपर पर दस्तखत कर दिए।
किरण