अस्तित्व
बड़ी हसरतों वह हजारों सपनों को संजोए अराधना ससुराल पहुंची। न जाने मायके वालों को अचानक कैसे भूला दी। समय जैसे पंख लगाकर उड़ान भर रहा था। पति-पत्नी के रिश्ते को समझने में दिन गुजर रहा था।सांस की सेवा में भी कोई कसर नहीं छोड़ी थी। बीच-बीच में जेठानी ताना मार फोन ही में कहा देती कितना भी पैरों...