सच्चा जोहरी
सिध्दगिरी नाम का एक छोटा सा गांव था।उस गांव में शांताराम नाम एक गरीब किसान रहता था।उसकी छोटी सी जमीन थी,उस जमीन में खुद हि परिश्रम से हल जोतने लेकर फसलों निकालना तथा उसे नगर में जाकर बेचने तक का सारा काम करता था। बहुत कष्ट लेते हुए अपनी छोटा-सा परिवार पालन-पोषण करता था। शांताराम इतना गरीब था की हर जोतने बैल भी नहीं थे। जमीन उपजाऊ बनाने,हल जोतने के हल को खुद ही बैल बनकर खिंचता था और उसकी पत्नी अपने दो साल के बच्चे को पेड़ के नीचे झूला बांधकर, उसमें सुलाया करती थी और हल को पीछे पकड़कर हल जोतती थी। ऐसा शांताराम के गरीब परिवार अपना गुजारा करता था।
एक दिन ऐसे ही हल जोतते व्यक्त, शांताराम की पत्नी हल के नीचे एक चमकिला पत्थर दिखाई दिया, अपने पति को हल को रोकने कहा और बोली -"अरी ओ जी, थोड़ा ठहरीए,इधर आईए देखो यह चमकिला पत्थर जमीन में हल नीचे है,जरा क्या है देखिए ना ?"
शांताराम पसिना पोंछते हुए अपनी पत्नी के पास आ गया और झुक कर जमीन में से वह चमकता पत्थर निकालकर हाथ में लिया और उसे कपड़े से साफ कर देखा तो और थोड़ा चमकदार हो गया। दोनों को बहुत खुशी हुई।
शांताराम बोले " यह कोई मौल्यवान वस्तु लगती है,उसे कल मैं शहर जाकर किसी आभूषण के दूकान में दिखाकर, अच्छी सी मोल मिले तो, भेजकर पैसे लेकर आऊंगा। मौल्यवान वस्तु हो तो हम घर में नहीं रख सकते, जितना हो सके उतने पैसे उसमें खुशी है और अपनी जिंदगी को थोड़ी मदद हो जाएगी,अगर सिर्फ पत्थर होगा तो,लेकर वापस आ जाउंगा।"यह सोचकर घर चलेआए।
दुसरे दिन शांताराम सुबह जल्दी उठकर नहा-धोकर वह चमकीला पत्थर एक अच्छे से कपड़े में बांधकर शहर निकला। रोज एक गाड़ी गांव से दुध भरकर शहर जाती थी तो उसी गाड़ी बैठकर शहर आ गया।वह बहुत सुंदर बड़ा शहर,जिधर देखो उधर बड़ी बड़ी इमारतें और मोटे-मोटे दुकान थे।
पहले एक छोटे से आभूषण के दुकान में गया और दुकान मालिक को प्रणाम कर , कपड़े में वह पत्थर निकालकर बोला-"मालिक मैं एक छोटा किसान, मेरे जमीन में हल जोतते वक्त यह...
एक दिन ऐसे ही हल जोतते व्यक्त, शांताराम की पत्नी हल के नीचे एक चमकिला पत्थर दिखाई दिया, अपने पति को हल को रोकने कहा और बोली -"अरी ओ जी, थोड़ा ठहरीए,इधर आईए देखो यह चमकिला पत्थर जमीन में हल नीचे है,जरा क्या है देखिए ना ?"
शांताराम पसिना पोंछते हुए अपनी पत्नी के पास आ गया और झुक कर जमीन में से वह चमकता पत्थर निकालकर हाथ में लिया और उसे कपड़े से साफ कर देखा तो और थोड़ा चमकदार हो गया। दोनों को बहुत खुशी हुई।
शांताराम बोले " यह कोई मौल्यवान वस्तु लगती है,उसे कल मैं शहर जाकर किसी आभूषण के दूकान में दिखाकर, अच्छी सी मोल मिले तो, भेजकर पैसे लेकर आऊंगा। मौल्यवान वस्तु हो तो हम घर में नहीं रख सकते, जितना हो सके उतने पैसे उसमें खुशी है और अपनी जिंदगी को थोड़ी मदद हो जाएगी,अगर सिर्फ पत्थर होगा तो,लेकर वापस आ जाउंगा।"यह सोचकर घर चलेआए।
दुसरे दिन शांताराम सुबह जल्दी उठकर नहा-धोकर वह चमकीला पत्थर एक अच्छे से कपड़े में बांधकर शहर निकला। रोज एक गाड़ी गांव से दुध भरकर शहर जाती थी तो उसी गाड़ी बैठकर शहर आ गया।वह बहुत सुंदर बड़ा शहर,जिधर देखो उधर बड़ी बड़ी इमारतें और मोटे-मोटे दुकान थे।
पहले एक छोटे से आभूषण के दुकान में गया और दुकान मालिक को प्रणाम कर , कपड़े में वह पत्थर निकालकर बोला-"मालिक मैं एक छोटा किसान, मेरे जमीन में हल जोतते वक्त यह...