...

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'pyar ki dasatan'
जब तुम्हे पहली बार देखा था,
तभी यार ने मेरे; मुझको रोका था।
जब पहली बार तुम्हारी जिद की थी,
तो मेरे गालो पर भी लालि आई थी।
तुम्हारे आनेसे पहले जिन्दगी धुआ धुआ थी,
जबसे तुम आगये तबसे जिन्दगी मे भी धुआ है।
जब मै तुम्हे चूमता हू,
तब तुम लाल गेन्दे के फुल जैसी खिल उठती हो।
और इतना कहके वो अपने जेब मे हाथ डालते हुए आगे बोला अरे लगता है मेरि जान घर पेही छुट गई, मेरि सिगरेट....।
यहीपे ऊसकी और जिसके साथ उसने अपने जिवन का बडा समय धुए मे ही उडा दिया उसकी दास्ताँ भी खत्म हो गई, सिर्फ कागज पे....।
© Atharva.U.A.Shaligram

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