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"सुगंधा " भाग-3 लेखक-मनी मिश्रा
,,,,,पर जो आईने के अंदर दिख रहा है मेरे ही रूप मे,
यह रंग रूप किसका हैं?; यह नैन नक्श किसके हैं?
शायद मैं अपने पापा पर गई हूँ।।वह खूबसूरत होंगे तभी तो मैं ऐसी हूं, फातिमा से बिल्कुल अलग ।
लेकिन मेरे पापा कौन हैं ?कहां रहते हैं? क्या करते हैं? कुछ पता नहीं। मेरी तो बहुत इच्छा होती है ।मां से यह सब पूछने की! लेकिन पूछ नहीं सकतीं, बिना सुगंधा की इच्छा या इजाजत के।
फिर भी उनसे मिलना चाहती हूं ,कभी मिल सकूंगी क्या? कभी नहीं।। क्योंकि हम जैसी हवेलियों में रहने वाली औरतों,लड़कियों के लिए "कोई मर्द "उसका भाई ,पति, प्रेमी ,या बेटा नहीं होता बल्कि दलाल ,आशिक, दीवाना ,या बेवजह का बोझ होता है।
लेकिन पिता तो पिता ही होता होगा ना!जो किसी औरत से मिला और एक नए जीवन का आरंभ हुआ । लेकिन वह...